कुण्डलियां
*बसंत*
(१)
आमा मउरे डार मा,परसा फूले लाल।
कोयल गावत गीत हे,पूछत सबके हाल।।
पूछत सबके हाल,बांध मया संग डोरी।
झूमे नाचे मोर,देख बसंत घनघोरी।।
हरियर डारा पान,सबो के दिन ह बहुरे।
राजा हे रितु आम,गांव अमरइया मउरे।।
(२)
मनभावन मन बावरी,ढूंढय रे मनमीत।
कोयल कूके डार मा,गावय सुघ्घर गीत।।
गावय सुघ्घर गीत,पंख दुन्नो फइलाये।
झूमय नाचय खार,देख बसंत हे आये।
जीना अब दुश्वार,नैन आँसू हे बोहे।
भाये नइ घर संसार,पिया मन भावन मोहे।।
(३)
आगे बिरहा के बखत,लगय जुवानी आग।
करम विधाता का गढ़े,चोला लगथे दाग।।
चोला लगथे दाग,मोर धधकत हे छतिया।
तरसे नैना मोर,मया के भेजव पतिया।।
कोयल छेड़य तान,कोयली मारे ताना।
छलनी छलनी देख,करे ये बिरहा गाना।।
✍ईंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*
*बसंत*
(१)
आमा मउरे डार मा,परसा फूले लाल।
कोयल गावत गीत हे,पूछत सबके हाल।।
पूछत सबके हाल,बांध मया संग डोरी।
झूमे नाचे मोर,देख बसंत घनघोरी।।
हरियर डारा पान,सबो के दिन ह बहुरे।
राजा हे रितु आम,गांव अमरइया मउरे।।
(२)
मनभावन मन बावरी,ढूंढय रे मनमीत।
कोयल कूके डार मा,गावय सुघ्घर गीत।।
गावय सुघ्घर गीत,पंख दुन्नो फइलाये।
झूमय नाचय खार,देख बसंत हे आये।
जीना अब दुश्वार,नैन आँसू हे बोहे।
भाये नइ घर संसार,पिया मन भावन मोहे।।
(३)
आगे बिरहा के बखत,लगय जुवानी आग।
करम विधाता का गढ़े,चोला लगथे दाग।।
चोला लगथे दाग,मोर धधकत हे छतिया।
तरसे नैना मोर,मया के भेजव पतिया।।
कोयल छेड़य तान,कोयली मारे ताना।
छलनी छलनी देख,करे ये बिरहा गाना।।
✍ईंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*
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