शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

पागा कलगी -27//2//गीता नेह

आगे मयारु बसंत सखी निक पागा मंजूर के पाँख सुहावन
रिगबिग फूल फुले अँगना झरे कहर महर छबि सुग्घर पावन
लाज के रंग रँगाये जिया मुसकावय पिया बड़ लोभ लोभावन
बजे बँसरी मन भीतरी ले झलके रंग जोबन ले मन भावन ।
परेम सुबास सुकंठ धरे भल गुरतुर गोठ हे आनी बानी
अटकय मटकय हपटय लपटय न करय ककरो संग आनाकानी
सुख के पुरव बरजोर करय करे कोन जतन तन के निगरानी
जब मया मतावत रार करय तब जोर चलय नइ चलय सियानी ।
गीता नेह

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