शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

पागा कलगी -27//1//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर'अंजोर'

विषय:- बसंत
"'लाबो चल परघाके द्वार'"
बँबुरी हा पइरी पहिराय।
सुनके सबझन दउड़त जाय।
गोंदा पहिरे पींयर सोन।
कोनजनी पहिराये कोन।
परसा फूले सुरूग लाल।
चुपरे कोनो लाल गुलाल।
सरसो के झूमत हे डार।
पींयर सोन पाय उपहार।
मउरे हे आमा के पेड़।
जेन ल राखे हावय मेड़।
मउहा माते हे सिरतोन।
कोन पियाये हे रस सोम।
पुरवाही छेड़े हे तान।
जइसे मन ला मिले जुबान।
गावत कोन मया के गीत।
जिनगी खोजत हे मनमीत।
आज खुशी भेंटत हे गांव।
अतका पबरित काखर पांव।
कोन भरे हे अइसन रंग।
जइसे सुख दुख मिलगे संग।
नंगारा नाती धर आय।
देख बबा ला खूब बजाय।
पुरवाही हा फगुआ गाय।
अरसी झुमका देय बजाय।
ये सब करनी करे बसंत।
मुच मुच हाँसय चमके दंत।
ऋतु राजा हे परसिध नाव।
आय खड़े हे हमरे ठाव।
सब संगी ला टेही पार।
लाबो चल परघाके द्वार।
रचना:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर'अंजोर'
शिक्षक,गोरखपुर,कवर्धा
9685216602
15/02/2017

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