शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

पागा कलगी -27//5//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बसंत
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चल बइठबों बसंत म,पीपर तरी।
पूर्वा गाये गाना ,घरी - घरी।
मोहे मन मोर मउरे,मउर आमा के।
मधूबन कस लागे,मोला ठउर आमा के।
कोयली कुहके ,कूह - कूह डार म।
रंग-रंग के फूले हे,परसा-मउहा खार म।
बोइर-बर-बंम्भरी बर,बरदान बने बसंत।
सबो रितुवन म , महान बने बसंत।
मुड़ नवाये डोले पाना,तरी-तरी।
पूर्वा गाये गाना ,घरी - घरी।
डोलत हे जिवरा देख,सरसो फूल पिंवरा।
फूल - फर धरे नाचे , राहेर, मसूर, तिवरा।
घमघम ले फूले हे, अरसी मसरंगी।
हंरियर गंहूँ-चना बीच,बजाय धनिया सरँगी।
सुहाये खेत -खार , तरिया - नंदिया कछार।
नाचे सइगोन-सरई डार, तेंदु-चिरौंजी-चार।
सुघरई बरनत पिरागे,नरी-नरी।
पूर्वा गाये गाना , घरी -घरी।
गोभी-सेमी-बंगाला,निकलत हे बारी म।
रोजेच साग चूरत हे, सबो के हाँड़ी म।
छेंके रद्दा रेंगइया ल, हवा अउ बंरोड़ा।
धरे नंगाडा पारा म , फगुवा डारे डोरा।
गाँव लहुटे सहर,अब दुरिहात हे बसंत।
जुन्ना पाना-पतउवा ल,झर्रात हे बसंत।
नवा - नवा प्रकृति ल,बनात हे बसंत।
खुदे रोके;मनखे बर, गात हे बसंत।
कर्मा-ददरिया-सुवा,तरी-हरी।
पूर्वा गाये गाना ,घरी-घरी।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

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