शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

पागा कलगी -27//3//ज्ञानु"दास" मानिकपुरी

विधा-दोहा मा लिखे के प्रयास
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-आमा मउरे सब डहर,महुआ हा ममहाय।
डारा बइठे कोयली,सुग्घर तान सुनाय।।
-महर महर बारी करय,हरियर हावय खेत।
आवत हावे फगुनुवा,राखे रहिबे चेत।।
-चंपा,गेंदा,मोंगरा, आनी बानी फूल।
देवत ए संदेश हे,सब राहव मिलजूल।।
- फूले सरसों निक लगे,टेसू झूलें डार।
मतंग तन मन हो जथे,झूमत हे संसार।।
-सुग्घर पुरवाही चलें,तन मन ला हरषाय।
मउसम बसन्त देख के,लगे जवानी आय।।
-स्वागत हे स्वागत हवे,हे बसन्त ऋतु तोर।
मनखे मनखे बन सके,अतके बिनती मोर।।
ज्ञानु"दास" मानिकपुरी
चन्देनी कवर्धा(छ.ग.)

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