शनिवार, 18 जून 2016

पागा कलगी-12/8/राजकिशोर पाण्डेय

मनखे मन के मन ले मया सिरावत हे ।
घरी घरी, घरी जातरी के आवत हे ॥
साँस के धरखन हावै दुनियाँ के रुख राई,
इंकरे ले झक्कर, झड़ी अउ हे पुरवाई ।
रुख ल काट के कस्साई कस गिरावत हे ॥
खोंधरा के भीतर ले चूजा चिंचियावत हे,
आरा टाँगा धर ओदे मनखे आवत हे ।
चिऊचींउ सुन के घलाव नइ सोगावत हे ॥
घाम ह आगी होगे अक्कल फेर नइ आइस,
केदार के परलै देखिस परछो फेर नइ पाइस ।
बादर के पुरुत पुरुत ह परपरावत हे ॥
धुर्रा गर्रा बादर आगी अउ पानी बर,
रुख राई बहुत ज़रूरी हें जिनगानी बर ।
कतेक जुग ले कवि हर चिंचियावत हे ॥
घरी घरी, घरी जातरी के आवत हे ॥
🌷🌹राजकिशोर पाण्डेय 🌹🌷
नगर पंचायत मल्हार 
मों न 9981713645
🌸🌷🌹🌻🌻🌻🌻🌻

पागा कलगी-12 /7/असकरन दास जोगी "अतनु"

"बसेरा🏡"
मनखे होगे अतका निरदई, आगे कौऊन बेरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!
करेजा नई फाटीच तुंहर, जब चलायेव आरी !
धरहा टंगिया म छोप डारेव, रूखवा के झिलारी !!
लुटागे छईहां मुड़ी ले, नई निकले हे पाँखी !
अंधरौटी आथे का तुंहला, नई दिखय आँखी !!
तुंहरे जईसन हमूं ल सिरजाये, नोहन हम लमेरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!१!!
खर-खर बाजीच आरी, कलपिच महतारी !
बचा नई सकिच हमला, रहिगे फड़फड़ावत भारी !!
खुन के आंसू रोवत रहिगे, करत चिवं-चावं !
झर्रट ले खोंधरा टुटगे, कोन मेरा मिलही छावं !!
थोर-थार चलत सांसा , का बांचे हमर मेरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!२!!
काट-काट के रूख-राई, नास करत हव जंगल ल !
पहुना कस नेवता नेवतत हव, अपन जिनगी म अमंगल ल !!
तुंहरो बसेरा एक दिन लुटाही , बताव तब कईसे लागही !
करम ठठावत रई जाहव, मांगे म छांव नई मिल पाही !!
बिन जंगल झाड़ी के , बंज्जर हो जाही धरती के कोरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!३!!
सुरूज जंग्गाये रईही रोज, करही मनमानी !
नई आही गर्रा धुका, कईसे गिरही पानी !!
हमर बिगाड़ करके, का तुंहर बन जाही !
हम तो माटी म मिल जाबो, फेर माटी रईही गवाही !!
कहां उड़ागे परवार हमर, कति डारिन होहीं डेरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!४!!
पलंग पलगई बनाहव, धुन बनाहव फईरका !
एक दुठन नही , काटे परत हव रूख खईरखा !!
मानवता मरगे का मनखे के, कबले होगे निरदई !
चिरई चिरगुन ल कलपावत हें, होगे हे करलई !!
आँखी म छावत हे हमर, अंधियारी के घेरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!५!!
चेत जावव अभी ले, बांचे हे बहूंत बेरा !
जंगल ल झन उजाड़ करव, झन टोरव ककरो डेरा !!
रूख-राई लगा-लगा के , ए धरती के सिंगार करव !
अपन संग-संग सबे जीव जंत्तु के , तुमन दुख ल हरव !!
नई करहव अईसन त, तुंहरो भभिस ल हे खतरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!६!!
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असकरन दास जोगी "अतनु"
पता : ग्राम-डोंड़की,पोस्ट+
तह-बिल्हा,जिला-बिलासपुर ( छग)
मो.नं. 9770591174

पागा कलगी-12/6/राजेश कुमार निषाद

।। झन काटव ग रुखराई ल ।।
चिरई चिरगुन मन काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
जंगल झाड़ी मन काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
इहि म हावय हमर बसेरा छोड़ के कहाँ जाबो अपन डेरा
ये रुखराई के कटईया सुन लव ग हमर करलाई ल।
चिरई चिरगुन काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
जंगल झाड़ी काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
प्रदुषण ल कम करईया देथे सुघ्घर प्राण वायु ल।
गरमी ल दूर भगईया नई बदलन दय जलवायु ल।
इखरे ले तो हमर जिनगानी हे झन घटन दव सुखदाई ल।
चिरई चिरगुन काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
जंगल झाड़ी काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
रुखराई सबो ल छईयां देथे अपन लोग लईका जईसन।
पर हमन ओला काट के अन्याय करत हन कईसन।
पेड़ लगावव ग जतन के बने महकन दव अमराई ल।
चिरई चिरगुन काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
जंगल झाड़ी काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
किसान मन के संगवारी त खेत बर पानी गिरईया ये।
घाम पियास ले दूर रखथे अऊ दुख पिरा के हरईया ये।
इखर बिना तो काही नइये बचा लव ग ये जीवनदाई ल
चिरई चिरगुन मन काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
जंगल झाड़ी मन काहत हे झन काटव क रुखराई ल।
रचनाकार ÷ राजेश कुमार निषाद
ग्राम चपरीद ( समोदा )
9713872983

पागा कलगी-12/5/जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

चीख चिरई के
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का करबोन राख, 
ये उड़ईया पाँख।
जइसने काटे पेड़ ल,
तइसने यहू ल काट।।
उड़-उड़ के चारो-कोति,
आके ईहचेच बईठन ।
खा-खा के फूल-फर ल,
मेछरान अउ अंईठन ।
मोर पिला लुकाय,
पाना के आड़ म।
ईहचेच रेहेन,
घाम-जाड़-असाड़ म।
झुलत रहेन झुन्ना फुलगी म,
देखत-देखत धरती-अगास।
का करबोन राख,
ये उड़ईया पाँख ।
जईसने काटे पेड़ ल,
तईसने यहू ल काट।
हमर संग कतरो परानी,
रोवत हे घेरी-बेरी।
तहूँ तो सुरतात रेहेय
बाँधत रेहेय गाय-गरुवा-छेरी।
फेर आरा अऊ टँगिया,
काबर चलाय।
मोर झाला - खोन्धरा ल,
काबर जलाय।
परे भुईयॉ म ,
लेवत हो आखिरी सांस।
का करबोन राख,
ये उड़ईया पाँख ।
जइसने काटे पेड़ ल,
तइसने यहू ल काट।
का पेड़ के फूल-फर ल,
हमीमन पोगरी खाथन?
बिन्थो लईका-लोग संग,
जेन ल हमन गिराथन।
रुख-राई के कोरा म,
लहलहात रिहिस गाँव।
तिंहा चिरई आज चीखत हे,
जे करत रिहिस चाँव-चाँव।
काट के रुख-राई ल,
मोर जिनगी संग अपनो जिनगी ल,
झन फाँस।
का करबोन राख,
ये उड़ईंया पाँख।
जइसने काटे पेड़ ल,
तइसने यहू ल काट।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
9981441795

पागा कलगी-12/4/ऋषि कुमार वर्मा

🌳झन काट रुख-राई ल🌳
हत् रे अभागा,तोला कतका बतावंव।
झन काट पेंड़ कहिके,कतका समझावंव।।
ये भुँइया ल तैँ अपन महतारी कहिथस।
बेटा अंव माटी के तैँ भारी कहिथस।।
फेर हत् रे करमछड़हा,ये तैँ काय करतहस।
काट-काट पेंड़ तैँ,बड़ बाय करतहस।।
खच्चित हे एक दिन तैँ भारी पछताबे।
उजरही तोर घर-दुवार त,करम ल ठठाबे।।
के ठन खोन्दरा हे ओ पेंड़ में,बने बट-बट ले निहार।
ओकर घर ल ऊजार्,तैँ मनावत हस तिहार।।
अपन करम के फल ल तैँ इंहेच भोगबे।
देखबे,तोरो घर उजरही,त तैँ कइसे रोकबे।।
अरे भोकवा,चिटिकुन सोंच,बिहिनिया के बेरा।
तोला सुते खटिया ले उठाथे,छोड़ अपन डेरा।।
अपन मया ल तैँ,मोर मैना,मोर सुआ,मोर कोयली,मोर पड़की कहिथस।
सब ल मार डरबे त देखहुँ,तैँ कइसे रहिथस।।
अरे रुख-राई,चिरई-चुरगुन,शोभा ये धरती दाई के।
कोनो बेटा नई उतारय,सिंगार अपन माई के।।
चेत जा,मान जा,झन काट रुख-राई ल।
नई ते तोर सेती रे पगला,भोगबो करलाई ल।।
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ऋषि कुमार वर्मा
ग्राम-निनवा
पोस्ट-मनोहरा
व्हाया-बैकुंठ
तह.-तिल्दा
जिला-रायपुर(छ.ग.)
493116

पागा कलगी-12/3/बी के चतुर्वेदी

रूखवा राई जीवन के खानदानी लागे रे
काट क झाड़ी जंगल. मनमानी लागे रे "
नई बांचे रखवा राई जीव जंतु कहां जाही
तोर अंगना चिरैया बोली नदारय हो जाही
तोला संसो न फीकर जीव चाय पानी लागे रे
सवले चतुरा सबले बपूरा मनखे तनखे लागे
अपने सुख देखे कभू दूसर दुख ला नई. झांके
तोरी मोरी चिथा पुदगी अजब. परानी लागे रे
कुसियार कतको मीठ लागे जरी ले नई. काटें
डारा पाना धरावत आगी कइसे जाड़ छांटे
मनखे जोनी सराज. अब. बेमानी लागे रे
बनखरहा जीव देखे गहबर कूदत.बइहा नाचे
चिरैया डारा डारा चहकत आनी बानी बाचें
मनखे जोनी सराज. अब. बैमानी लागे रे
हवा पानी गर्रा धुंका पनीया बिमार. लागे
कभु डोले धरती गुइंया किल्ली गोहार. लागे
एठत अटियात करे विकास के जुबानी लागे रे
तोर चतुराई होगे मुड.पीरा कतेक जीये पाही
हवा में बिमारी वहे पानी मा जहर. घोराही
तोर जीनगी मा जिद्दी मरे के दिवानी लागे रे
तोला देथे तेला काटे सांस कहां ले पाबे
घर. वनाये उजारे जंगल सांप. जैसनहा चाबे
तोर चतुराई. हर. कतका बयानी लागे रे
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बी के चतुर्वेदी
8871596335

पागा कलगी-12/2/डी पी लहरे

बन के रूख म आरी चलावव झन
बन के रूख ल उजारव झन।
पंछी परानी ल मारव झन।
देवता होथे परकृति ह
बिगडथे हमर संस्कृति ह
अपन सुवारथ ल बढावव झन।
पंछी परानी के बली चढावव झन।
रूख म काबर आरी चलावत हव
दुकाल ल खुदे बलावत हव
पानी गिराथे छईहा देथे
पेड ह
ऑकसीजन म सांहच चलावत हव।
पंछी परानी बाघ भालु
सबके बन म बसेरा होथे
आनी बानी के जडी बुटी
सबके बन म डेरा होथे।
आरी चलाहु रूख म त पानी कहा से आही।
तडफ के जाही सब जीव जंतु मन पियास कामा बुझाही।
नीक लागथे कोयली, हंस, मजूर, बनकुकरी के बोली।
झन शिकार करव ईंखर
झन चलावव गोली।
बन के रूख म आरी चलावव झन।
बन ल उजारव झन
पंछी परानी ल मारव झन।
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लिखईया--डी पी लहरे
कवर्धा ले---