शनिवार, 18 जून 2016

पागा कलगी-12/2/डी पी लहरे

बन के रूख म आरी चलावव झन
बन के रूख ल उजारव झन।
पंछी परानी ल मारव झन।
देवता होथे परकृति ह
बिगडथे हमर संस्कृति ह
अपन सुवारथ ल बढावव झन।
पंछी परानी के बली चढावव झन।
रूख म काबर आरी चलावत हव
दुकाल ल खुदे बलावत हव
पानी गिराथे छईहा देथे
पेड ह
ऑकसीजन म सांहच चलावत हव।
पंछी परानी बाघ भालु
सबके बन म बसेरा होथे
आनी बानी के जडी बुटी
सबके बन म डेरा होथे।
आरी चलाहु रूख म त पानी कहा से आही।
तडफ के जाही सब जीव जंतु मन पियास कामा बुझाही।
नीक लागथे कोयली, हंस, मजूर, बनकुकरी के बोली।
झन शिकार करव ईंखर
झन चलावव गोली।
बन के रूख म आरी चलावव झन।
बन ल उजारव झन
पंछी परानी ल मारव झन।
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लिखईया--डी पी लहरे
कवर्धा ले---

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