शनिवार, 18 जून 2016

पागा कलगी-12/3/बी के चतुर्वेदी

रूखवा राई जीवन के खानदानी लागे रे
काट क झाड़ी जंगल. मनमानी लागे रे "
नई बांचे रखवा राई जीव जंतु कहां जाही
तोर अंगना चिरैया बोली नदारय हो जाही
तोला संसो न फीकर जीव चाय पानी लागे रे
सवले चतुरा सबले बपूरा मनखे तनखे लागे
अपने सुख देखे कभू दूसर दुख ला नई. झांके
तोरी मोरी चिथा पुदगी अजब. परानी लागे रे
कुसियार कतको मीठ लागे जरी ले नई. काटें
डारा पाना धरावत आगी कइसे जाड़ छांटे
मनखे जोनी सराज. अब. बेमानी लागे रे
बनखरहा जीव देखे गहबर कूदत.बइहा नाचे
चिरैया डारा डारा चहकत आनी बानी बाचें
मनखे जोनी सराज. अब. बैमानी लागे रे
हवा पानी गर्रा धुंका पनीया बिमार. लागे
कभु डोले धरती गुइंया किल्ली गोहार. लागे
एठत अटियात करे विकास के जुबानी लागे रे
तोर चतुराई होगे मुड.पीरा कतेक जीये पाही
हवा में बिमारी वहे पानी मा जहर. घोराही
तोर जीनगी मा जिद्दी मरे के दिवानी लागे रे
तोला देथे तेला काटे सांस कहां ले पाबे
घर. वनाये उजारे जंगल सांप. जैसनहा चाबे
तोर चतुराई. हर. कतका बयानी लागे रे
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बी के चतुर्वेदी
8871596335

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