शनिवार, 18 जून 2016

पागा कलगी-12/5/जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

चीख चिरई के
__________________________
का करबोन राख, 
ये उड़ईया पाँख।
जइसने काटे पेड़ ल,
तइसने यहू ल काट।।
उड़-उड़ के चारो-कोति,
आके ईहचेच बईठन ।
खा-खा के फूल-फर ल,
मेछरान अउ अंईठन ।
मोर पिला लुकाय,
पाना के आड़ म।
ईहचेच रेहेन,
घाम-जाड़-असाड़ म।
झुलत रहेन झुन्ना फुलगी म,
देखत-देखत धरती-अगास।
का करबोन राख,
ये उड़ईया पाँख ।
जईसने काटे पेड़ ल,
तईसने यहू ल काट।
हमर संग कतरो परानी,
रोवत हे घेरी-बेरी।
तहूँ तो सुरतात रेहेय
बाँधत रेहेय गाय-गरुवा-छेरी।
फेर आरा अऊ टँगिया,
काबर चलाय।
मोर झाला - खोन्धरा ल,
काबर जलाय।
परे भुईयॉ म ,
लेवत हो आखिरी सांस।
का करबोन राख,
ये उड़ईया पाँख ।
जइसने काटे पेड़ ल,
तइसने यहू ल काट।
का पेड़ के फूल-फर ल,
हमीमन पोगरी खाथन?
बिन्थो लईका-लोग संग,
जेन ल हमन गिराथन।
रुख-राई के कोरा म,
लहलहात रिहिस गाँव।
तिंहा चिरई आज चीखत हे,
जे करत रिहिस चाँव-चाँव।
काट के रुख-राई ल,
मोर जिनगी संग अपनो जिनगी ल,
झन फाँस।
का करबोन राख,
ये उड़ईंया पाँख।
जइसने काटे पेड़ ल,
तइसने यहू ल काट।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
9981441795

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें