सोमवार, 4 जुलाई 2016

पागा कलगी-12/43/वसंती वर्मा

पेड़ के गोहार🌹🌿🌳
रोवय पेड़ कहै भुईया ल
कइसे बांचव दाई
ये धरती के मइनसे मन
काटत हें मोर ठाही
मोर छाॅव ले मोर ठाॅव ले
जिनगी जेमन पाइन
काबर होगिन बइरी ओमन
जेमन फर फूल खाइन
मंय हवं ठिहा चिरई चिरगुन के
हाॅवव ओखर घर दुवार
मोला काटत हें बइरी मइनसे
फेर छुटत हे चिरई मन के परान
वसंती वर्मा
बिलासपुर छत्तीसगढ़🌳

पागा कलगी-12/42/सेवक राम साहू""राम""

का सूख पाबे तै घर ला मोर
उजाड़ के।
बिन मुँह के जीव मै काला कहू पुकार के।।
🌴रसता मा छईहां घलऊ नई पाबे रे।
निर्दोष जीव ला कतका सताबे रे।।
🏕अपन बनाये बर मोर घर ला मीझाल देहे।
हरीयर हरीयर रुख राई जम्मो ला काट देहे।।
🏜भीयं के इज्जत रुखे राई ले हे।
स्वर अऊ संगीत तोता मैना चिराई ले हे।।
🕴सबो अपने कस मानव संगी हो।
अपनेच ला अपन झन जानव संगी हो।।
🙏�सेवक राम साहू""राम""🙏
ऊनी (खम्हरीया)
8085719189

पागा कलगी-12/41/श्रवण साहू

काटत हस रूख राई ला,
मानसुन ला अब परघाही कोन?
पेड़ तो कतको जीव के बसेरा
चिरई चिरगुन ला बचाही कोन?
सुरता कर तोर नानपन ला
अमरईया म झुला झुलत रहे।
निक निक सुघर पीपर तरी
मनेमन म अब्बड़ फुलत रहे।
संसो कर ऊही डारा के तैंहा
झुलना तोला अब झुलाही कोन?
पेड़ तो कतको जीव के बसेरा
चिरई चिरगुन ला बचाही कोन??1??
रूख राई देबी देव बरोबर
तैं पांव मा आरी चलावत हस।
डहाके तै काखरो घर डेरा
पाप ला भारी कमावत हस।
राकछत बनत हे मनखे ह ता
मानवता धर्म ला निभाही कोन??2??
आवत जावत तोर संसा के
आवन जावन हा टूट जाही।
माटी कस परे रहिबे माटी मा
देहे ले जीव जब छुट जाही।
बिन लकड़ी के तोर चिता ला
कामा अऊ कईसे जलाही कोन?
पेड़ तो कतको जीव के बसेरा
चिरई चिरगुन ला बचाही कोन??3??
रचना- श्रवण साहू
ग्राम-बरगा, जि.- बेमेतरा

पागा कलगी-12/40/ओमप्रकाश चौहान

हमर जंगल दाई
🌴🌲🌳🍁🍂🌵🌴
रुख राई जंगल दाई 
ये जम्मो हमर परान हे,
झन काटव बयरी कोई
हमर पुरखा येहर निसान हे।
कईसन सुख पाए बर
करे निच्चट उदीम तैय,
निरलज जिव के घर उजार
करदेस मानवता गिरवी तैय।
ये पुरवा अमराई हलधर के
भार भरोसा बर अब कोन हे
करनी निटोरत मानुष के
पकरिती काबर अब मउन हे।
नोहर भुंइयाँ मानुस भर,
गोहार करत 'ओम' जम्मो महान
न तोर ताक बगरय न मोर
करव सबे अइसे जुरमिल निदान।
🌴 ओमप्रकाश चौहान 🌴
🌻बिलासपुर🌻

पागा कलगी-12/39/सुरेश कुमार निर्मलकर'सरल'

रुख राई भुइयाँ के देवता बरोबर
जतन करे ले येकर भइया
करिया बादर लकठियाही,
झिमिर झिमिर पानी बरसाही,
लहर लहर तोर खेत लहराही,
नही त भोगबे लातूर बरोबर
सुक्खा ठाड़े हाहाकार मचाही।
परबूधियई म भुगतावत हे तोला,
परकिती देख चेतावत हे तोला,
बन जा अब तो सुजानिक बेटा
छोड़ टंगिया,आरी अउ बउसला।
भुंइया के देवता ल जौंहर
तै बने संजोवत हस,
आरी चला के रुख म तै
अपनेच जर ल खोदत हस।
जेकरे पुन परताप म तै
सुग्घर जिनगी जियत हस,
रेत रेत आरी म तै
ओकरेच गर ल पूजत हस।
चिरई चिरगुन् जीव परानी के खोंधरा
अपन सुवारथ बर उजारत हस,
पिलवा मन के दुख म
करेजा महतारी के कलपावत हस।
तै कइसे रहिबे रे बुध नासी
चिरई चिरगुन् के घर ल फ़ोरत हस,
रुख राई के संग छोड़त हस,
धरती दाई के सिंगार उजारत
पछताबे तै पाछु परबूधिया
अपने रद्दा तै बिगाड़त हस।
जतन करके संगी जतन करके गा,
संवार दे जिनगी जीव जन्तु रुख राई के,
तोरो जीवन भर के इहि मन अधार ये,
अउ दुनिया म इहू मन ला जिए के अधिकार हे।
🙏🙏🙏
रचना
सुरेश कुमार निर्मलकर'सरल'
वार्ड नं.12 बेरला जि.बेमेतरा
9098413080

पागा कलगी-12/38/तरूण साहू "भाठीगढ़िया"

जान बुझ के टंगिया ल अपन पांव म मारव झन
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जान बुझ के टंगिया ल, अपन पांव म मारव झन ।
अपन घर ल अंजोर करेबर, दूसर घर ल बारव झन ।।
रुखराई अउ जीव जंतु सबो हर हमर मितान हे,
जे हर येला काटथे मारथे वो हर पशु समान हे ।
चिरई चिरगुन जंगल के परानी मनला तुमन मारव झन,
जान बुझ के टंगिया ल अपन पांव म मारव झन ।।
रुखराई ल काटबे त हावा कहाँ ले पाबे तै,
बरषा जब नई होही त पानी कहाँ ले पाबे तै ।
अंकाल अउ दुकाल ल, तुमन हर गोहरव झन,
जान बुझ के टंगिया ल अपन पांव म मारव झन।।
सुरूज अंजोरी म पाना ले रुख हर खाना बनाथे,
हावा ल सुद्ध करथे अउ बरषा घलो बुलाथे ।
जे खांधा म बइठे हो उही खांधा ल काटव झन,
जान बुझ के टंगिया ल अपन पांव म मारव झन।।
धरती के सिंगार करे बर रुखराई ल जगबो,
हरियर परयावरन बनाके परदुसन ल भगाबो।
परयावरन के मरजादा अउ नियम ल बिगारव झन,
जान बूझ के टंगिया ल अपन पांव म मारव झन।।
तरूण साहू "भाठीगढ़िया"
ग्राम भाठीगढ़, ( मैनपुर )
जिला गरियाबन्द ( छ.ग.)
मो.न. 9755570644
9754236521

पागा कलगी-12/37/ज्ञानु मानिकपुरी "दास"

"धरती दाई क गुहार"
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का होही दुनिया म, गुनके हव परशान।
दुनिया मा मनखे कथे, सबले हवव सुजान।
सबले तय हावस रे ज्ञानी। काबर करथस रे नादानी।
दुरिहागे हे अन्न अउ पानी। बिपत म डाले तय जिनगानी।
लगय काबर कखरो पीरा। तोला ऊट के मुहु म जीरा।
कखरो करलई अउ चितकार। फेर काबर नइ सुनय गुहार।
तुहुमन ओखर कोरा म, थके मांदे थिराव।
थोरक स्वारथ म आके, सबला जथव भुलाव।
जग म सबले ज्ञानी कहाई। काबर बन गय फेर कसाई।
रुख राई ल लगा नइ सकव। आरी टनगिया म काटत हव।
चिरई चिरगुन के उजड़े घर। भटके ये डहर ले वो डहर।
भुखे प्यासे उन कहा जाही। पानी बादर कहा लुकाही।
रुख राई जिनगी के, जानलव ग आधार।
करव पेड़ के तुम जतन, इही तोर बर सार।
लकड़ी जड़ी बुटी अउ फल फुल। सबला प्राणवायु देथे कुल।
धरती माँ के सिंगार आवय। देथे छाँव बरषा बलावय।
चिरई,नदी,अउ रुखराई। अउ मनखे सब भाई- भाई।
मिलके सब तोर करथे जतन। "ज्ञानु" कर सन्कल्प उखर कर जतन।
नदी,रुखराई, जंगल, के मिल करलव मान।
धरती के गुहार ल सुन,इखर ले तोर जान।
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ज्ञानु मानिकपुरी "दास"
चंदेनी कवर्धा
9993240143