सोमवार, 4 जुलाई 2016

पागा कलगी-12/41/श्रवण साहू

काटत हस रूख राई ला,
मानसुन ला अब परघाही कोन?
पेड़ तो कतको जीव के बसेरा
चिरई चिरगुन ला बचाही कोन?
सुरता कर तोर नानपन ला
अमरईया म झुला झुलत रहे।
निक निक सुघर पीपर तरी
मनेमन म अब्बड़ फुलत रहे।
संसो कर ऊही डारा के तैंहा
झुलना तोला अब झुलाही कोन?
पेड़ तो कतको जीव के बसेरा
चिरई चिरगुन ला बचाही कोन??1??
रूख राई देबी देव बरोबर
तैं पांव मा आरी चलावत हस।
डहाके तै काखरो घर डेरा
पाप ला भारी कमावत हस।
राकछत बनत हे मनखे ह ता
मानवता धर्म ला निभाही कोन??2??
आवत जावत तोर संसा के
आवन जावन हा टूट जाही।
माटी कस परे रहिबे माटी मा
देहे ले जीव जब छुट जाही।
बिन लकड़ी के तोर चिता ला
कामा अऊ कईसे जलाही कोन?
पेड़ तो कतको जीव के बसेरा
चिरई चिरगुन ला बचाही कोन??3??
रचना- श्रवण साहू
ग्राम-बरगा, जि.- बेमेतरा

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