सोमवार, 29 अगस्त 2016

पागा कलगी-16//16/सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

संगी मोर परेवना आबे।
आतो तै मोर मइके जाबे।
उहां हे मोर सुरता के कुरिया।
रहिथे जिहां दुलरुवा भैया।
पहुंच कपाट के कुंडी अइठबे।
पांयलगी कर कलाई म बइठबे।
बइठ गुटर गू कहिबे देबे।
ए..ले तोर बहिनी के राखी ल...
उहां ले उड़बे सुरता के बारी।
जिहां मिलही मोर महतारी।
ओंढ़ के ओकर अंचरा लुकाबे।
चेत लगाके सुन झन भुलाबे।
गर पोटार के कोरा म बइठबे।
बइठ गुटर गू कहिबे देबे।
ए..ले तोर दुलौरीन के पाती ल...
उहां ले उड़ जाबे बहरा खार म।
बइठे होही मोर ददा पार म।
मयारू ददा के पांव ल छूबे।
पांव छुवत झन आंसू बहाबे।
संउहे खड़े हो पांख फइलाबे।
पांख फइलाय गुटर गू कहिबे बताबे।
कतर गे तोर चिड़िया के पांखी ह...
भेजे मोला पहुंचाये बर राखी ल...
झन गिराबे आंसू ददा आंखी ल...
रचना:--सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर,कवर्धा

शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

पागा कलगी-16 //15//लक्ष्मी करियारे

तर्ज -- सुवा गीत
* अँचरा ल चीरी-चीरी चिट्ठियाँ भेजत हव रे परेवना के
लेजा मोर भइया बर सोर..
न रे परेवना के लेजा मोर भइया बर सोर...
* भाई - बहिनी के मया ये बंधना राखी अमरादे रे परेवना के जिंवरा अमर होइ जाए तोर..
न रे परेवना के जिंवरा अमर होइ जाए तोर...
* बहिनी के मया चिनहा सूत हे कच्चा न रे परेवना के बाँधी लेबे रेशमी डोर..
मोर भइया ग बाँधी लेबे रेशमी डोर...
* राखी तिहार मइके गजब हे दुरिहा रे परेवना के सुरता आँसु भीजे अंचरा छोर..
न रे परेवना के सुरता आँसु भीजे अंचरा छोर...
* चंदा कस उज्जर मोर भइया के मुख लागे न रे परेवना के माथे चंदन तिलक अंजोर..
न रे परेवना के माथे चंदन तिलक अंजोर...
* नंजर झन लागे मोर भइया ल ककरो रे परेवना के लेजा काजर आंखी के कोर..
न रे परेवना के लेजा काजर आंखी के कोर...
* सुख - सुख बितय मोर भइया के जिनगानी न रे परेवना के देबे आशीष करव विनती कर जोर..
न रे परेवना न के देबे आशीष करव विनती कर जोर...
लक्ष्मी करियारे 

पागा कलगी-16//14//निशा रानी

सावन के महीना आगे 
सावन म होते राखी
परदेश म तै रथस भइया
कैसे भेजो तोर ब राखी
1 चिट्ठी पतरी लिखे नई जानव
कैसे लिखव चिठिया
बड़ दिन तोला देखे होगे
आँखि म झुलत हे तोर सुरतिया
सावन के .......
2 परेवना करा भेजत हव
मैं ह तोर बर राखी
येला तै पहिर ले भइया
मोर जुड़ाही छाती
सावन के.......
3 परदेस म तै खुश रहिबे
ये मन के विश्वास ये
कच्चा सूत झन समझ
ये हमर मन के मिठास ये
सावन के......
4भाई - बहिनी के मया पिरित के
सावन महीना खास हे
जम्मो बहिनी भाई मन ल
सावन के रहिथे आस हे
सावन के.......
निशा रानी 
जाँजगीर
छत्तीसगढ़

गुरुवार, 25 अगस्त 2016

पागा कलगी-16//13// गुमान प्रसाद साहू


लेजा रे परेवना..लेगी जा मोर भइया बर तै राखी।
पहूचा देबे मोर भइया अंगना,बन जाबे मया के तै साखी।
राखी संग तै लेजा परेवना,
भइया बर मोर मया चिनहारी।
ले के संदेशा उतर तै जाबे,
भइया के मोर अंगना दूआरी।
रसता ल तोरे जोहत हे कहिबे..
बहिनी तोर गड़ाये आंखी।
लेजा रे परेवना..लेगी जा मोर भइया बर तै राखी।
कहि देबे संदेशा भईया ल,
बने बने हावय बहिनी तोर।
नइ आ पावे बहिनी तोर आसो,
बांध लिही भइया राखी ल मोर।
सोर संदेश मोर मइके के लाबे,
फैलाके परेवना तै ह पाँखी।
लेजा रे परेवना..लेगी जा मोर भइया बर तै राखी।
दाई ददा के मोर सूध ले लेबे,
ले लेबे सूध भऊजाई के।
करत रथे कहिबे तुहरे सुरता,
बचपन के सूध ल लमाई के।
पहूचा संदेशा तै लहूट आबे परेवना,
लकठीया गे हे तिहार राखी।
लेजा रे परेवना..लेगी जा मोर भइया बर तै राखी।
रचना :- गुमान प्रसाद साहू
ग्राम-समोदा ( महानदी ) मो.9977313968
आरंग जिला-रायपुर

पागा कलगी-16 //12//नवीन कुमार तिवारी,


रद्दा देखत हवे रे,,
रद्दादेखत हवे,
अमरो्तींन भोजी हा,
अपन छुटकुन भय्या के,
रद्दा देखत हवे,,
आँखी ले झिमिर झिमिर ,,
धारा बोहावत हवे रे,
आँखी ले,,
फेर कहां लुकाये हवे,छुटकुन हा
नदिया डोंगरी छान डारिस भोजी हा,,
अपन छुटकुन भय्या के,
रद्दा देखत हवे,,
आँखी ले झिमिर झिमिर ,,
धारा बोहावत हवे रे,
आँखी ले,,
कोन बताही संगी वीर सैनिक के बात,
नायक बनके गे रिहिस कश्मीरके घाट
वीर छुटकुन लड़ीस आतंकी संग
भारी पढगे आतंकी के घात
अलकरहा होगेरे घाटी कशमीर माँ
शहीद होगे रे छुटकुनभय्या घाटी कश्मीर मा,
कोन बताही संगी वीर सैनिक के बात,
रद्दा देखत हवे रे,,
रद्दादेखत हवे,
अमरो्तींन भोजी हा,
अपन छुटकुन भय्या के,
रद्दा देखत हवे,,
नवीन कुमार तिवारी,,,,

पागा कलगी-16//11//ज्ञानु मानिकपुरी"दास"


काबर फरकत हे गज़ब आज मोर आँखी
भाई बहिनी के मया के तिहार आवत हे राखी।
जा जा रे सुवना जल्दी उड़ावत दोनों पाखी
पहुँचा दे रे सुवना मोर सन्देशा के पाती।
झन बिलम जाबे रे सुवना कोनो तिरा
देखत होही भाई रद्दा धधकत हे मोर छाती।
बलम परदेशिया सास ससुर बीमार हे
दाई ददा के शोर कर लेबे कहि देबे नइ आवत हे तोर बेटी।
जल्दी जा रे मोर बिपत के हरइया संगी
सुरता आवत हे मइके के जा रे मोर सेती।
संगी सहेली अउ गांव बस्ती के शोर ले लेबे
सबके कर लेबे हाथ जोड़के बिनती।
ज्ञानु मानिकपुरी"दास"
चंदेनी कवर्धा

पागा कलगी-16//10// राजेश कुमार निषाद


।। ले जा मोर राखी के संदेसा ।।
ले जा मोर राखी के संदेसा
ये मयारू मैना मोर।
राखी तिहार आगे हे लकठा
अब तै मोला झन अगोर।
बड़ दुरिहा म रहिथे मोर भईया
ओ हर मोला सोरियावत होही।
बहिनी के मया ल भुलाही कईसे
संगी जहुरिया करा अपन गोठियावत होही।
धीरे धीरे जाबे झन करबे तै सोर
ले जा मोर राखी के संदेसा
ये मयारू मैना मोर।
खेलई कुदई कईसे भुलावंव मैं लईका पन के।
भईया मोर राहय संगवारी बरोबर बचपन के।
तीर म राहंव त मया दुलार ल पावंव।
राखी के तिहार म हाथ म राखी बांधव।
जाके भईया ल मोर कहिबे
बड़ सुरता करत रहिथे बहिनी तोर।
ले जा मोर राखी के संदेसा
ये मयारू मैना मोर।
राखी तिहार साल म एकेच बार आथे
पर भाई बहिनी के मया ल कोनो कहाँ भुलाथे।
दाई ददा ले तो जनम पाये हन
बहिनी के रक्छा करे के वचन भाई ह निभाथे।
अइसे लगत हे मोला देख आतेंव भईया ल मोर
ले जा मोर राखी के संदेसा
ये मयारू मैना मोर।
राखी तिहार आगे हे लकठा
अब तै मोला झन अगोर।
रचनाकार ÷ राजेश कुमार निषाद
ग्राम चपरीद ( समोदा )
9713872983