गुरुवार, 25 अगस्त 2016

पागा कलगी-16//10// राजेश कुमार निषाद


।। ले जा मोर राखी के संदेसा ।।
ले जा मोर राखी के संदेसा
ये मयारू मैना मोर।
राखी तिहार आगे हे लकठा
अब तै मोला झन अगोर।
बड़ दुरिहा म रहिथे मोर भईया
ओ हर मोला सोरियावत होही।
बहिनी के मया ल भुलाही कईसे
संगी जहुरिया करा अपन गोठियावत होही।
धीरे धीरे जाबे झन करबे तै सोर
ले जा मोर राखी के संदेसा
ये मयारू मैना मोर।
खेलई कुदई कईसे भुलावंव मैं लईका पन के।
भईया मोर राहय संगवारी बरोबर बचपन के।
तीर म राहंव त मया दुलार ल पावंव।
राखी के तिहार म हाथ म राखी बांधव।
जाके भईया ल मोर कहिबे
बड़ सुरता करत रहिथे बहिनी तोर।
ले जा मोर राखी के संदेसा
ये मयारू मैना मोर।
राखी तिहार साल म एकेच बार आथे
पर भाई बहिनी के मया ल कोनो कहाँ भुलाथे।
दाई ददा ले तो जनम पाये हन
बहिनी के रक्छा करे के वचन भाई ह निभाथे।
अइसे लगत हे मोला देख आतेंव भईया ल मोर
ले जा मोर राखी के संदेसा
ये मयारू मैना मोर।
राखी तिहार आगे हे लकठा
अब तै मोला झन अगोर।
रचनाकार ÷ राजेश कुमार निषाद
ग्राम चपरीद ( समोदा )
9713872983

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