मंगलवार, 30 अगस्त 2016

पागा कलगी-16//22//रामेश्वर शांडिल्य

मोर परेवा
आज राखी के तिहार तै आ जा मोर पास।
दुरिहा रहिके मोर मन ल झन कर उदास।
मै बिना भाई के तोला बलावथव।
राखी बांध के तोला भाई बनावथव।
तोर करा भाई के मया जोड़ देहेव।
गोड़ म राखी बांध के छोड़ देहेव।
जग ल सन्देश दे आ बहनी के
सब के देखभाल करो मिल के
मोर सादा परेवा शांति के ये सन्देश।
बगरा देबे पूरा देश बिदेश।
संकट म होही तोर ये बहनी जटायु कस बचा लेबे।
मोर दुःख पीरा ल पथरा कस पचा लेबे।
दाना पानी धर के अगोरत रहूँ।
खिड़की ले रस्ता निहारत रहूँ।
रामेश्वर शांडिल्य
हरदी बाजार कोरबा

पागा कलगी-16//21//दिलीप वर्मा

मोर सुख दुःख के तें संगवारी, 
अब तोर हाबय सहारा । 
बिच भवर म फसे हाबय, 
तहिं लगा दे किनारा। 
आज पुनीमा सावन के ये, 
भाई जोहत रस्ता। 
मोर राखी म मया भरे हे, 
न मंहगा न सस्ता। 
जारे परेवना उड़ जा तेंहा, 
मोर भाई के देशे। 
राखी संग म लेजा भइया, 
ते मोरे संदेशे। 
कहिबे भइया तोर बहिनी ह, 
हाबय अबड़ अभागिन। 
महल अटारी भेज के मोला, 
दाई ददा ह तियागिन। 
दया मया ल राखबे भइया, 
आबे कभु मोर गांवे। 
राखी मेहा भेजत हाबव, 
बांध लेबे मोर नावे। 
जे रस्ता ले जाबे परेवना, 
उहि रस्ता ले आबे। 
जोहत खिड़की ठाढ़े रइहुं, 
भाई के सन्देसा लाबे।। 
दिलीप वर्मा 
9926170342

पागा कलगी-16//20//पी0पी0 अंचल

बहिनी के पाती ले जा रे परेवना,
भाई ल कही देबे संदेश।
बहिनी के राखी ले जा रे चिरइया,
प्रेम के देइ देबे उपदेश।।
भाई ल कहिबे परेवना,
बहिनी तोरे बने हावय।
संसो फिकर झन करही,
भांची भांचा रेंगत हावय।
कछु के फिकर न कलेश......
परेम के देही देबे उपदेश।।
अबड़ सुरता आथे तोरे,
भेंट होही त कहिबे।
दुःख के कोनो बतिया,
इहाँ के झन कहिबे।
आगू बढ़य बनय नरेश........
प्रेम के देही बे उपदेश।।
राखी मोरो बाँध लिही,
बहिनी बाँधथे समझ के।
मीठा बोली बोलिबे बने
गोथियाबे बात बने मगज के।
कड़ा गोठ म पहुँच थे ठेस.......
परेम के देहि देबे संदेश।।
अपनों खियाल रखही,
संग अपनों परिवार के।
काँटा गोड़ म झन गड़य,
पाँव रखही निमार के।
मोदक चढ़ाही उत्सव गणेश......
परेम के देहि देबे उपदेश।।
रचना:-
पी0पी0 अंचल
हरदी बाज़ार कोरबा

सोमवार, 29 अगस्त 2016

पागा कलगी-16 //19//कन्हैया साहू "अमित" *

आंसू बन अमावत हच भाई आंखी म।
सावन के झङी झरय सुरता राखी म।।...
नान्हेंपन बङ होयेन झगरा,
बिटोवन भारी देखा के नखरा।
घेरी बेरी रिस, हांसे फेर निक,
रोवत हांसत खेलेन संघरा।।
मया पलपलाय जबर तभो छाती म।१
सावन के झङी झरय सुरता राखी म।।...
सुख पीरा जुरमिल के बांटेन,
एक दुसर बर लबारी मारेन।
बिपत म संगी,बखत म ठेनी,
लइकापन म पदोना डारेन।
सुररत रथंव सुरता दिन राती म।२
आंसू बन अमावत हच भाई आंखी म।।...
सीमा म डंटे तैं बन के सिपाही,
देस सेवा तोर जिनगी सिराही।
तिहार बहार सुरता अपार,
घर आये के कब संदेसा आही।।
अगोरा म निहारत रथंव मुहांटी ल।३
सावन के झङी झरय सुरता राखी म।।...
चिट्ठी पतरी सोर न संदेस,
बङ दुरिहा भाई गे परदेस।
बांध लेबे तैं मया डोरी कलई,
भेजे हंव असीस दुवा बिसेस।।
जोरे पठोएव परेवना पांव पांखी म।४
आंसू बन अमावत हच भाई आंखी म।।..
सावन के झङी झरय सुरता राखी म।।....
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*कन्हैया साहू "अमित" *
शिक्षक~भाटापारा
जिला~बलौदाबाजार छ.ग.
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पागा कलगी-16//18//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

परेवना राखी देके आ
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परेवना कइसे जाओं रे,
भईया तीर तंय बता?
गोला-बारूद चलत हे मेड़ो म,
तंय राखी देके आ.......|
दाई-ददा के छईंहा म राहव त,
बईठार के भईया ल मंझोत में।
बांधो राखी कुंकुंम-चंदन लगाके,
घींव के दिया के जोत में।
मोर लगगे बिहाव अउ,
भईया होगे देस के।
कइसे दिखथे मोर भईया ह,
आबे रे परेवना देख के।
सुख के मोर समाचार कहिबे,
जा भईया के संदेसा ला.....|
सावन पुन्नी आगे जोहत होही,
भईया ह मोर राखी के बाट रे।
धकर-लकर उड़ जा रे परेवना,
फईलाके दूनो पाँख रे।
चमचम-चमचम चमकत राखी,
भईया ल बड़ भाही रे।
नांव जगा के ; दाई - ददा के,
बहिनी ल दरस देखाही रे।
जुड़ाही आँखी,ले जा रे राखी,
दे जा भईया के पता........|
देखही तोला भईया ह परेवना ,
त बहिनी के सुरता करही रे।
जे हाथ म भईया के राखी बँधाही,
ते हाथ देस बर जुग-जुग लड़ही रे।
थर-थर कापही बईरी मन ह,
भईया के गोली के बऊछार ले,
रक्छा करही राखी मोर भईया के,
बईरी अउ जर - बोखार ले।
जनम - जनम ले अम्मर रहे रे,
भाई - बहिनी के नता.............|
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

पागा कलगी-16 //17//चैतन्य जितेन्द्र तिवारी

जा रे कबूतर जा राखी के सन्देसा देके आ
मयारू भाई ला ए बहिनी के खबर देके आ
गजब दिन होंगे भाई तै आए काबर नई
तै मोला अपन खबर भेजवाय काबर नई
जा रे चिरइया भाई ला मोर पाती देके आ
जा रे कबूतर जा राखी के सन्देसा देके आ ।1।
रक्षा बंधन तिहार भाई मैं कईसे तोला भुलाहु
साल के रहिथे अगोरा मोर पीरा तोला सुनाहु
मोर भाई मोला भुलाहि झन पाती देके आ
जा रे कबूतर जा राखी के सन्देसा देके आ ।2।
मोर मन के पीरा अंतस के पता भेजे हौं
राखी संग मोर हिरदे के व्यथा भेजे हौं
बइठे हौं रद्दा जोहत जा मोर पाती देके आ
जा रे कबूतर जा राखी के सन्देशा देके आ ।3।
CR
चैतन्य जितेन्द्र तिवारी
थान खम्हरिया(बेमेतरा)

पागा कलगी-16//16/सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

संगी मोर परेवना आबे।
आतो तै मोर मइके जाबे।
उहां हे मोर सुरता के कुरिया।
रहिथे जिहां दुलरुवा भैया।
पहुंच कपाट के कुंडी अइठबे।
पांयलगी कर कलाई म बइठबे।
बइठ गुटर गू कहिबे देबे।
ए..ले तोर बहिनी के राखी ल...
उहां ले उड़बे सुरता के बारी।
जिहां मिलही मोर महतारी।
ओंढ़ के ओकर अंचरा लुकाबे।
चेत लगाके सुन झन भुलाबे।
गर पोटार के कोरा म बइठबे।
बइठ गुटर गू कहिबे देबे।
ए..ले तोर दुलौरीन के पाती ल...
उहां ले उड़ जाबे बहरा खार म।
बइठे होही मोर ददा पार म।
मयारू ददा के पांव ल छूबे।
पांव छुवत झन आंसू बहाबे।
संउहे खड़े हो पांख फइलाबे।
पांख फइलाय गुटर गू कहिबे बताबे।
कतर गे तोर चिड़िया के पांखी ह...
भेजे मोला पहुंचाये बर राखी ल...
झन गिराबे आंसू ददा आंखी ल...
रचना:--सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर,कवर्धा