सोमवार, 29 अगस्त 2016

पागा कलगी-16//18//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

परेवना राखी देके आ
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परेवना कइसे जाओं रे,
भईया तीर तंय बता?
गोला-बारूद चलत हे मेड़ो म,
तंय राखी देके आ.......|
दाई-ददा के छईंहा म राहव त,
बईठार के भईया ल मंझोत में।
बांधो राखी कुंकुंम-चंदन लगाके,
घींव के दिया के जोत में।
मोर लगगे बिहाव अउ,
भईया होगे देस के।
कइसे दिखथे मोर भईया ह,
आबे रे परेवना देख के।
सुख के मोर समाचार कहिबे,
जा भईया के संदेसा ला.....|
सावन पुन्नी आगे जोहत होही,
भईया ह मोर राखी के बाट रे।
धकर-लकर उड़ जा रे परेवना,
फईलाके दूनो पाँख रे।
चमचम-चमचम चमकत राखी,
भईया ल बड़ भाही रे।
नांव जगा के ; दाई - ददा के,
बहिनी ल दरस देखाही रे।
जुड़ाही आँखी,ले जा रे राखी,
दे जा भईया के पता........|
देखही तोला भईया ह परेवना ,
त बहिनी के सुरता करही रे।
जे हाथ म भईया के राखी बँधाही,
ते हाथ देस बर जुग-जुग लड़ही रे।
थर-थर कापही बईरी मन ह,
भईया के गोली के बऊछार ले,
रक्छा करही राखी मोर भईया के,
बईरी अउ जर - बोखार ले।
जनम - जनम ले अम्मर रहे रे,
भाई - बहिनी के नता.............|
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

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