शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

पागा कलगी -26//2//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"

विषय:- //आसो के जाड़//
विधा:- रुचिरा छन्द
कइसे के गोठियाँव संगी,
राम कथा इही जाड़ के।
दांत ओंठ कँपवावत दहरा,
भीतर हमागे हाड़ के।
निपटे खातिर ए दहरा ले,
नइहे कोनो जुगाड़ गा।
बुता तियारे करै न कोई,
ढचरा लगावैं ठाड़ गा।
ददा बिचारा मुंधरहा ले,
पैरा भूँसा डारत हे।
नागर बैला फाँद जाड़ ला,
लउठी धर ललकारत हे।
नान्हे बिरवा इही जाड़ ला,
जइसे खड़े अगोरत हे।
गहुँ चना संग सब्जी भाजी,
छछलत कंसा फोरत हे।
नान्हे नान्हे लइका मन ले,
जैसे दहरा हारत हे।
बाँचे बर बुधियार परानी,
झिटका भूर्री बारत हे।
खुसरे खुसरे कमरा भितरी,
बबा बिचारा झाँकत हे।
चहा ल धरके नाती बहु हा,
करत ठिठोली हाँसत हे।
टोर उवे बर चक्कर बँधना,
सुरुज ला जोजियावत हें।
बैठे सबझन आँट गली मा,
रमनिया सोरियावत हें।
रचना:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"
'शिक्षक'गोरखपुर,कवर्धा
25/01/2017
9685216602

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