बुधवार, 23 नवंबर 2016

पागा कलगी -22//2//देवेन्द्र कुमार ध्रुव(डी आर )

जब ले नोटबन्दी के बात ला सुनत हे,
सबो झन मुड़ धरे मने मन गुनत हे,
चार पईसा दाई मन गठियाये अछरा मा,
फेके के लईक होगे आज ओ कचरा मा....
सुतके उठगे बड़े फजर बड़े बिहान,
दिनभर बैंक के चक्कर काटत हे सियान,
बिगन खाये पीये होवत हे हलाकान,
ऐती होवत हे काम बूता के नकसान....
का बतान जेवन कइसे भिड़त हे दू जून के,
कइसे होवत हे बेवस्था तेल,गुड़,नुन के,
अरे पीरा हे, जब ले नोट बन्दी होगे हे,
घर मा राखे जम्मो बड़े नोट रद्दी होगे हे ....
बड़ा दुखदाई हे बीमार मनखे के कहानी,
पईसा नइहे एकठन,बिसाय बर दवई पानी,
बिगन ईलाज कतको के जीव छूट जात हे,
जीनिस मन मांहगी,सस्ता होगे जिनगानी...
कोनो उबर नई पावत हे ऐकर चोट ले,
काही बिसाय नई सकय,हाथ धरे नोट ले,
बांचे हे बुता,लईका के छट्ठी नामकरनी के,
काकरो घर खात खवई नई होहे,मरनी के...
नोनी के बाबू मुड़ ला धरे हे
बिहाव के लगन इही समे परे हे
फिकर हे कइसे उठही बेटी के डोली
काला देके पठोहु खाली हे मोर झोली.....
नफा....
जभे होही ऐ कालाधन के नास ,
तभे होही देस के सुघ्घर विकास,
नोट बन्दी के फरमान ले जागिस आस,
हमरे हित के काम सबो करत हे बिसवास...
बईठे बईठे देस के गद्दार बर पईसा पहुँचे,
गोला बारूद हथियार बर पईसा पहुँचे,
अब पूरा जर हाल जाही आतंकवाद के,
नास हो जाही देस मा नक्सलवाद के....
फलत फुलत रिहिस बैपार नकली पईसा के,
पता नई चल पाये असल अऊ खइता के,
हमनला नचवावय देखाके खेल कागज़ के,
अब कागजे रही ओ नकली पईसा कागज के.
जगा जगा सबो हमनला रिसवत मांगे,
बिगन दे काम नई होवय हाथ ला टाँगे,
अब रिसवत के गोठ ले सबो कंपकपाही
ऊपर डाहर के कमई ला कते डाहर खपाही..
खेल बन्द हो जाही कालाबाजारी के,
ढंग बदल जाही घटिया कारोबारी के,
चपक के राखे राहय तेला अब आघू लाही
कचरा मा फेकही नईते आगी मा धराही....
करचोरी करे देस ला खोखला करे,
अपन झोली ला ओ दोगला भरे,
नवा सबक हरे ऐहा गद्दार मन बर,
सबो अच्छा हे वफादार मन बर.....

रचना
देवेन्द्र कुमार ध्रुव(डी आर )
'फुटहा करम' बेलर
जिला गरियाबंद

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें