रविवार, 31 जनवरी 2016

पागा कलगी-2//हितेश तिवारी

"इनसानियत शरमिनदा फेर उम्मीद हे जिन्दा "
करम म पाहाड़ फूट गे,फेर स्वाभिमान जिन्दा हे
खुशि अउ किस्मत के डोर छूट गय,
फेर ईमान जिन्दा हे
कोन ला काहओ जिम्मेदार,
अउ कोन ला बखानव
दुख दरद अउ मया पिरा ला काखर मेर गोठियावाव
जिनगी के बिरा उठाये बर
बिरा के धंधा हे
दु जुअर के रोटी घलो तो नई मिलय
फेर उम्मीद जिन्दा हे
लोगन देखथे ,पुछथे अउ
हास के निकल जाथे
कोनो तरस खाथे ,फेर कैईथे ये आज कल धंधा ए
कोन ल नई लागाये ,सुघर घुमे खाए के सऊख
फेर ये करम के फंदा ए
जिनगी म गाज गिर गय
फेर उम्मीद जिन्दा हे
मजबुरी के बादल ,अऊ दुख के बिछओना हे
अऊ ए छोटे आखी ला
एक ठान अगोरा हे
जम्मो पुजा पाठ मा पान लेगथे लोगन
एको ठन तो भगवान ला मिठा जय
अऊ मोरो किस्मत चमक ही ,
ए ही उम्मीद मा ठाडे मोर दुनिया हे
इन्सानियत शरमिन्दा फेर उम्मीद जिन्दा हे
हितेश तिवारी
धरोहर साहित्य समाज लोरमी (मुगेली)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें