सोमवार, 25 जनवरी 2016

पागा कलगी 2//मिलन मलहरिया

***जिनगी के बोझा***
नोनी बहनी नोहय ग, जिनगी के रे बोझ !
टूरा मनतो  मारथे, निकलय नही ग सोझ !!
बदला बिचार खूदके,  बेटा बड़ाहि कूल !
अबके लइका टांगथे, दाई ददा ल सूल !!
बोझ असल ओहीच हे, देत बुढ़ापा छोड़ !
भारी होथे दुख दरद, खसलत जिनगी मोड़ !!
कपूत आके मेटथे, घर कुरिया अउ खेत !
गुनले तैहा जीवन म , बने लगाके चेत !!
बड़े अमर-बेले जरी, दुसर खून चूसाय !
असल बोझ सनसारके, जेन लूट के खाय !!
तूही सोचा बोझ हे, कोन सकल संसार !
ओही जाने बोझ ला, भोगय दूख अपार !!


मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर

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