सोमवार, 31 अक्तूबर 2016

पागा कलगी -20//3//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

दया - मया के दिया जलाके,
मोह-माया के फटाका ल फोड़व।
मन के अंधियारी ल मेंटव भइया,
हिरदे ले हिरदे जोड़व।
अंधियारी खोली डर लागे।
करू-करू बोली डर लागे।
मन म इरखा- दुवेस भरे हे,
हाँसी - ठिठोली डर लागे।
देखावा के रंग ल धोके,
सत के ओढ़ना ओढ़व।
मन के अंधियारी ल मेंटव भइया,
हिरदे ले हिरदे जोड़व।
मोटरा धर धरम के।
गघरी फोड़ भरम के।
लिख सबो बर दया-मया,
धर कलम करम के।
बोली बनाथे नता-रिस्ता,
भांखा म मंदरस घोरव।
मन के अंधियारी ल मेंटव भइया,
हिरदे ले हिरदे जोड़व।
दाई लछमी घरो-घर बिराजे,
गली - खोर उजियार हे।
बांटे बर खुसी सबला,
आय देवारी तिहार हे।
भेदभाव के रुंधाय भांड़ी ल,
सुमत के हथोड़ी ले तोड़व।
मन के अंधियारी ल मेंटव भइया,
हिरदे ले हिरदे जोड़व।
चारो मुड़ा चिक्कन-चांदुर हे,
फेर मन म अंधियार हे।
सबके मन उजराही तभे तो,
सिरतोन म देवारी तिहार हे।
संगे - संग सब बढ़व आघू,
कखरो हाथ झन छोड़व।
मन के अंधियारी ल मेंटव भइया,
हिरदे ले हिरदे जोड़व।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

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