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शनिवार, 25 जून 2016

पागा कलगी-12/27/सुशील यादव

का नफा नुकसान हे भाई
तुहर अलग भगवान हे भाई
रुख राई ला काट मढ़ाएव
गाव उही पहिचान हे भाई
तरिया पार पीपर हवा में
बर्नी भर अथान हे भाई
चिरइ चिरगुन के बसेरा में
बिहिनिया के अजान हे भाई
एके पेड़ ऐ जनम उगा लो
इहि म जम्मो ज्ञान हे भाई
सुशील यादव 

शुक्रवार, 24 जून 2016

पागा कलगी-12/26/लक्ष्मी करियारे

रूख रई झन काटव ग भइया
एकरे से हमर जिनगानी हे..
पीरा ल समझव चिरई चुरगुन के 
जम्मो के एके कहानी हे...
जिनगी के सब रस सकेले अपन अँचरा मं
मिलथे जीवन एकर एक एक सँथरा मं
लेवय नही कछु हमर से
देते रइथे जइसे राजा दानी हे..
रूख रई झन काटव ग...
कहाँ नाचे मंजूर कहाँ झूम के कोईली गाही
बन ल बचाव नही त सब ये नंदा जाही
हरियर रहय दाई के अँचरा ह
सुआ पाखी लुगरा ये धानी हे..
रूख रई झन काटव ग...
पुरवा घुमर के करिया बादर बलाथे
डारा पाना बन म मया के गीत गाथे
ए ही जीवन के गीत ये संगी
अटकन बटकन मुनि घानी हे..
रूख रई झन काटव ग...
जुरमिल बैर भाव के खचवा ल पाटव
सुघ्घर सुमत के नवा बीझा लगावव
चलव लगाबो पेड भइया
ए ही हमर परवा कुरिया छानी हे..
रूख रई झन काटव ग....
रूख रई झन काटव ग भइया
एकरे से हमर जिनगानी हे..
पीरा ल समझाव चिरई चुरगुन के
जम्मो के एके कहानी हे...
एकरे से हमर जिनगानी हे....
लक्ष्मी करियारे 
जाँजगीर
छत्तीसगढ़
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गुरुवार, 23 जून 2016

पागा कलगी-12/25/महेन्द्र देवांगन माटी

रुख ल झन काटो
*****************
रुख राई ल झन काटो,जिनगी के अधार हरे 
एकर बिना जीव जंतु, अऊ पुरखा हमर नइ तरे 
इही पेड़ ह फल देथे, जेला सब झन खाथन
मिलथे बिटामिन सरीर ल, जिनगी के मजा पाथन
सुक्खा लकड़ी बीने बर , जंगल झाड़ी जाथन
थक जाथन जब रेंगत रेंगत, छांव में सुरताथन
सबो पेड़ ह कटा जाही त, कहां ले छांव पाहू
बढ़ जाही परदूसन ह, कहां ले फल फूल खाहू
चिरई चिरगुन जीव जंतु मन, पेड़ में घर बनाथे
थके हारे घूम के आथे, पेड़ में सब सुरताथे
झन उजारो एकर घर ल, अपन मितान बनावो
सबके जीव बचाये खातिर, एक एक पेड़ लगावो
********************
रचना
महेन्द्र देवांगन माटी
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला - कबीरधाम (छ ग )
8602407353

पागा कलगी-12/24//आचार्य तोषण

॥चिरई के दरद दुख॥
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चिरई कहिथे मनखे ला
झन काटव गा रूख ला
का तुंहर ले देखे नी जाय
हमर मन के दरद दुख ला
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सुवारथ बर अपन तैहर
जंगल ला उजारत हस
रूख राई म बसे चिरई
जिते जियत तै माराथस
देवतहस हमला दुख त
कहां ले पाबे तै सुख ला
का तुंहर ले देखे नी जाय
हमर मन के दरद दुख ला
--------------------------
तहूं जीव तइसने हमूं जीव
सबला गढ़य भगवान गा
नइ बन सकस इंसान त
झन बन तै शैतान गा
पाप करेबर छोड़ दे तै
यमराज देखही तोर मुख ला
का तुंहर ले देखे नी जाय
हमर मन के दरद दुख ला
--------------------------
चिरई कहिथे सुनरे मनखे
जिए के हमला अधिकार हे
जंगल झाड़ी के दाना पानी
इही मा हमर संसार हे
सच्चा मनखे विही हरे
समझे सबके सुख दुख ला
का तुंहर ले देखे नी जाय
हमर मन के दरद दुख ला
--------------------------
आचार्य तोषण
धनगांव डौंडीलोहारा
बालोद छत्तीसगढ़

पागा कलगी-12 /12/संतोष फरिकार

*झन उजाड़व*
डोगरी पहाड़ परवत के 
पेड़ ल झन काटव गा
नान नान चिरंई चिरगुन के
बसे बसाए घर ल झन उजाड़ गा
मांई नान नान पीला ल धर के काहा जही
पेड़ ह नई रही अपन बर खोधरा काहा बनाही
गरमी के दीन पेड़ लहकत रहिथे
नान नान पीला कतका सुघ्घर चहकत रहिथे
कोनो जगा के पेड़ ल झन काटव
बरसात म एक ठन पेड़ लगावव
चिरंई चिरगुन के जीव ल बचावव
बसे बसाए घर ल झन उजाड़व
जिए के एक बहाना हरय
पेड़ ह जिनगी के सहारा हरय
हवा पानी ले बचे के बहाना हरय
पानी बरसात म लुकाय के सहारा हरय
पेड़ ल झन काटव गा
कखरो घर ल झन उजाड़व गा
**************************************
रचना संतोष फरिकार
देवरी भाटापारा
9926113995

पागा कलगी-12/23/कन्हैया साहू "अमित"

आवव,
परकीति के पयलगी पखार लन।
धरती ल चुकचुक ले सिंगार दन।
परकीति के पयलगी पखार लन।।
धरती ल चुकचुक ले सिंगार दन।।।
रुख-राई फूल-फल देथे,
सुख-सांति सकल सहेजे।
सरी संसार सवारथ के,,
परमारथ असल देते।।
धरती के दुलरवा ला दुलार लन।
जीयत जागत जतन जोहार लन।।
परकीति के पयलगी पखार लन।।१
रुख-राई संग संगवारी,
जग बर बङ उपकारी।
अन-जल के भंडार भरै,
बसंदर के बने अटारी।।
मत कभु टंगिया,आरी,कटार बन।
घर कुरिया ल कखरो उजार झन।।
धरती ल चुकचुक ले सिंगार दन।।२
रुख-राई ल देख बादर,
बरसथे भुइंया आगर।
बिन जल जग जल जाही,
देवधामी जस हे आदर।।
संरक्छन के सुग्घर संसार दन।
परियावरन के तैं रखवार बन।।
परकीति के पयलगी पखार लन।।३
रुख-राई ल बचाव संगी,
पेङ परिहा बनाव संगी।
चिहुर चिरई चिरगुन,
सिरतोन सिरजाव संगी।।
बिनास ल बेवहार म उतार झन।
पर हित 'अमित' पालनहार बन।।
धरती ल चुकचुक ले सिंगार दन।।४
परकीति के पयलगी पखार लन।।।।
***********@*************
@ v @
हथनीपारा~भाटापारा
जिला~बलौदाबाजार (छग)
पिनकोड~493118
संपर्क~9753322055
WAP~9200252055
©©©©©©©©©©@©©©©©©©©©©
@ लगाव रुख~कमाव सुख@

बुधवार, 22 जून 2016

पागा कलगी-12/22/अमित चन्द्रवंशी"सुपा"

का होंगे आज मनखे मन ला दुनिया ला बरबाद करे बर तुले हवय,
दुनिया ला उजाड़े बर पेड़ पौधा ला काटे बर मनखे मन तुले हवय।
पेड़ ही नई होहिय ता शुद्ध-शुद्ध ताजा-ताजा वायु कहा ले पहु,
दुनिया मा जीना हवय ता पड़े पौधा ला कटाव नही ओला उगहु।।
उजड़त हवय जंगल हा जमीन होवत हवय रुखासुखा,
उजड़त हवय जंगल हा पशु पक्षी दुनिया ले जावत हवय।
पानी सुखागे पेड़ झाड़ हा दुःखे बरोबर दिखात हवय,
पर्यावरण ला बरबाद करे बर मनखे मन तुले हवय।।
कबहु-कबहु जंगल मा आगी लगथे,
पुरा पशु-पक्षी मन जल के मर जाथे।
का होंगे मनखे मन ला पेड़ ला कटथे,
ट्रेन दौड़ाय बर जंगल ला उजड़त हे।।
वर्षो बाद जंगल धरती में धस के नवा-नवा कोयला देथे,
कबहु-कबहु प्रकृतिक आपदा ले जंगल ह बचावत हवय।
हर साल नवा-नवा फूल-फल सुन्दर हवा देवत हवय,
तभो मनखे मन दुनिया ला उजड़े बर पेड़ काटत हवय।।
-अमित चन्द्रवंशी"सुपा"
रामनगर कवर्धा
8085686829

पागा कलगी-12/21/चोवाराम वर्मा

"झन काटव पगला"
-------------------------------
झन काटव पगला रुख राई ल
कलपावव मत धरती दाई ल।
रुख राई,जंगल झाड़ी म
जीव जन्तु के बसेरा हे।
सुवा,मैना,पड़की,कठखोलवा
नाना पंछी के डेरा हे।
बड़ मयारू होथे बिरवा
दाई ददा कस कोरा हे।
समझावव बहिनी भाई ल।
झन काटव पगला रुख राईल
देख तो नान नान पिलवा,
कइसन छटपटावत हे।
तोर चलाये आरा आरी
चिर करेजा खावत हे।
बिन छंईहाँ घाम पियास म
कतको झन मर जावत हे।
करम के फल भुगते ल परही
तोर पाप घईला भरावत हे।
सरग म बईठे चन्द्रगुप्त ह
घाटे घाटा चढ़ावत हे।
झन खन गिरे बर खाई ल।
झन काटव पगला रुख राई ल
नई रइहि जंगल झाड़ी
हवा बिना मर जाबे।
बंजर हो जहि भुँइया के कोंख
अन्न पानी कंहाँ ले पाबे।
डार के चुके बेंदरा कस
मुड़ धर पाछू पछताबे ।
अपने टंगिया म अपने गोड़ ल
काट रोबे चिल्लाबे।
झन रिसवावव"बादल"भाईल
(रचनाकार---चोवाराम वर्मा "बादल"ग्राम पोस्ट हथबंध )

सोमवार, 20 जून 2016

पागा कलगी-12/20/महेश मलंग

जियत जागत देवता ए भैया
नदिया जंगल रुख राई .
एला बचाव लव कहिके
गोहरावत हे परकिति दाई.
ये नदिया जंगल पहार
हमला मिले बरदान आय
जम्मो परानी के जिनगी के
अहि सहारा और परान आय.
फर फूल जरी बुटी देथे
अहि लाथे बरखा रानी.
चला के आरी रुख राई म
करत हन बड़ नदानी .
परियाबरन के रच्छा करथे
मौसम के चक्का चलाथे.
परदूषन राक्षस ले घलो
हमला एहा बचाथे.
दुनिया म मंगल तब तक हे
जब तक बचे हे जंगल.
खतम हो जाही तौ हो जाही
सबके जीना दुभर.
जेन डारा म बैईठन ह
ओही ला झन काटव .
बहुत हो गे देरी भैया
अब तो सब मन जागव .

-महेश मलंग

पागा कलगी-12/19/डा: गिरजा शर्मा

सब प्रानी संग चिर ई चिरगुन
मन पारें गोहार
एहर हमर है जीये के अधार
झन का टो तुमन मितान
उमड़त घुमड़त करिया। बादर ल बलाके
एमन पानी बरसाथें ग
त हरियाथे हमर धरती दाई
सोनहा धान हर लहलहाथे खेत म
त किसान हर मुसकाथे ग मितान
एमे के फूल फल अमरित कस
एकर छाँव म जुड़ाथे ग प्रान
आज उजारबो हमन ऐला त न ई बाँचे ग हमर परान
सब झन मिलके किरिया खाई
जगाबो ग हमन रूख राई ल
हमर दाई के कोरा ल हरियर करबो
आऊ गरब बो बन जाबो एकर मितान
आऊ बचा बो सबके प्रान
आवा आवा ग मितान।
🌷🌷🌷🙏
डा: गिरजा शर्मा
क्वार्टर-225,से-4/a
बालको नगर
कोरबा। (छ ग)

पागा कलगी-12/18/सूर्यकांत गुप्ता

परियावरन बचाव
चीरत हौ का समझ के, मोरद्ध्वज के पूत।
काटे पेड़ जियाय बर, नइ आवय प्रभु दूत।।
रूख राइ काटौ मती, सोचौ पेड़ लगाय।
बिना पेड़ के जान लौ, जिनगी हे असहाय।।
बिन जंगल के हे मरें, पशु पक्षी तैं जान।
बाग बगइचा के बिना, होही मरे बिहान।।
आनन फानन मा सबो, कानन उजड़त जात।
करनी कुदरत ला तुँहर, एको नई सुहात।।
पीये बर पानी नही, कइसे फसल उगाँय।
बाढ़े गरमी घाम मा, मूड़ी कहाँ लुकाँय।।
जँउहर तीपन घाम के, परबत बरफ ढहाय।
परलय ओ केदार के, कउने सकय भुलाय।।
एती बर बाढ़त हवै, उद्यम अउ उद्योग।
धुँगिया धुर्रा मा घिरे, अनवासत हन रोग।।
खलिहावौ झन देस ला, जंगल झाड़ी काट।
सरग सही धरती हमर, परदूसन मत पाट।।
करौ परन तुम आज ले, रोजे पेड़ लगाव।
बिनती "सूरज" के हवै, परियावरन बचाव।।
जय जोहार.......
सूर्यकांत गुप्ता
1009, "लता प्रकाश"
सिंधिया नगर दुर्ग (छ. ग.)

पागा कलगी-12 /17/शुभम् वैष्णव

कुंडली-
चिरई मन जाही कहाँ , जब काटहु सब पेंड़।
करले थोकिन तैं दया , ओला झन अब छेड़।
ओला झन अब छेड़ , उजाड़ झन तैं घरौंदा।
जुड़ जुड़ के तिनका ह, ऊंखर बने ग घरौंदा।
झन ले कखरो हाय , जिनगी दुभर हो जाही।
अपन घर मन ल छोड़, कहाँ चिरई मन जाही।
सिरा जाही ग सम्पदा, हो जाही नुकसान।
जस धरती के अंग हे , तस एला तैं मान।
तस एला तैं मान, एखर तैं ह कर रक्षा।
सब ह करै सम्मान, होवय ग अइसन शिक्षा।
काल ले सबो मेर , इही तो बात सुनाही।
कखरो घर टुटही त , तोर पुन्य सिरा जाही।
देख झन अपन फायदा , पेंड कटई ल रोक।
जेन मन पेड़ काटही , ओहु मन ल तैं टोंक।
ओहु मन ल तैं टोंक , खरा नियम तैं बना दे।
करय सब ह सम्मान, तै ह अब अलख जगादे।
झन कर बन के नास, परानी के ग कर जतन।
रख तैं सबके ध्यान , फायदा देख झन अपन।
-शुभम् वैष्णव

पागा कलगी-12/16/बी के चतुर्वेदी

" जीवन अउ जंगल "
**************************************
"रूखवा राई जीवन. के खानदानी लागे रे
काट काट झाड़ी जंगल. मनमानी लागे रे "
"नई बांचे रूख राई जीव जंतु कहां जाही
तोर. अंगना चिरैयय बोली नदारत. हो जाही
तोला संसो फीकर जीव. चाय. पानी लागे रे "
"वनखरहा जीव देखे गहबर कूदत. नाचे
चिरैया डारा डारा चहकत. आनी बानी बांचे
कैसन भूईयां आकास. के कहानी लागे रे "
"कुसियार कतको मीठ लागे जरी ले नई काटें
डारा पाना धरावत आगी कैसन जाड़ छांटे
मनखे जोनी सुराज अब. बईमानी लागे रे "
"हवा पानी गर्रा धुंका पनिया बिमार लागे
कभू डोले धरती गुइंया किल्ली गोहार. जागे
एठत अटियात करे विकास के जुबानी लागे रे "
"तोर चतुराई होगे मुड़ पीरा कतेक जीये पाही
हवा मा बिमारी बहे पानी मा जहर घोराही
तोर जिनगी के जिद्दी मरे के दिवानी लागे रे "
"सबले चतुरा सवले बपुरा मनखे तनखे बांके
अपन. सुख. देखे कभू दूसर के दुख. नई. झांके
तोरी मोरी चिथा पुदगी अजब. परानी लागे रे "
"तोला देथे तेला तै काटे तौ सांस. कहां ले पाबे
घर. बनाये उजारे जंगल. वन सांप. जैसन चाबे
तोर. चतुराई. हर. कतका कन. बयानी लागे रे "
*************************************
बी के चतुर्वेदी 8871596335
क्वाटर न-- डी टाईप 153
एच टी पी एस कालोनी दर्री
कोरबा पश्चिम जिला कोरबा

पागा कलगी-12/15/योगेश साहु

"झन काट रुख ला"
***********************************
झन काट सगवारि ओ रुख ला गा .... 
जेमे मिलते तोला फल फुल हा गा ....... 
चारों कोति हवा चलत हे ...... 
कतना सुघड़ लगत हे .....
 कतना खुशी के बात ए सगवारि हो .......
 ए रुख राई हाबे ना ता हमर जिंदगी चलत हे....
जिंदगी जीए बर आए हन ......
जइसन हमर ए घर हे .......
ओसने ओ काकरो घर ए ........ 
झन काट सगवारि ओ रुख ला वहु
में काकरो जीवन हे........
 झन काट सगवारि ओ रुख ला गा ..........
जीव जंतु चिराई मन तोला देखत हे ...... 
अब हमन कहा जाबो कहीं के ओकर आँखी ले आसु निकलत हे ........
 झन काट सगवारि ओ रुख ला गा ......... 
एमे सबके जिंदगी ह समाये हे .......
उही रुख ले कच्चा माल बनके आय हे ........ 
अउ ए जिंदगी ला चालाये बर बेरोजगार मन ला काम दिलाये हे...... 
झन काट सगवारि ओ रुख ला गा........
सबो झन के जिंदगी इही में हे ........
 फुल मिलत हे फल मिलत हे.......
अउ मिलत हे चारा .......
 झन काट सगवारि ओ रुख ला गा ए जिंदगी के नईये ठिकाना ......
***योगेश साहु अरजुनि बालोद ***

रविवार, 19 जून 2016

पागा कलगी-12/14/अनुभव तिवारी

तरपत तरपत रहिगे चिरई अमराई कहां गंवागे रे
नावा जुग का आइस मनखे जुन्ना जुग ल भुलागे रे
दुख पीरा काकर करा गोहरावन देवता पथरा होगे रे
संसो म जिनगी पहाथे सुख अब सपना होगे रे
जेखर खांद म कूदन झूलन ओ बर पीपर नंदागे रे
नावा जुग का आइस मनखे जुन्ना जुग ल भुलागे रे
कइसे जिनगी जीबो संगी लोहा लाखड के अमराई म
कांपत हे छाती बिचकत हे मनखे अपन परछाई म
परियावरन परदूसित होगे चिरइ चुरगुन सिरागे रे
नावा जुग का आइस मनखे जुन्ना जुग ल भूलागे रे
अब भूंइया नइ बांचिस सिरतो मरघट काला बनाबो रे
परिया परे खेती डोली ल फेर कइसे हरियाबो रे
मानुस के लोभन म देखा सावन घलौ रिसागे रे
नावा जुग का आइस मनखे जुन्ना जुग ल भूलागे रे |
**************************************
आपका
अनुभव तिवारी खोखरा जांजगीर चाम्पा छग 9179696759

पागा कलगी-12/13/ललित साहू "जख्मी"

"लकड़ी चोरहा" (बियंग)
अरे टूरा कहां जात हस रे
टंगिया धर के मटमटात हस रे
गोंदे तो रा एको ठन रुख ला
चपटा दुहुं साले तोर मुख ला
तोर बाप के राज चलत हे का
मोला रुख गोंदे बर छेंकत हस
कतको ला कटवात हे सरकार हा
फेर हर पईत तेहा मुही ला देखत हस
रुख गोंद के मेहा परवार पोसत हव
जंगल उजरईया मन ला महुं कोसत हव
हमन तो सुख्खा रुख ला गोंद के लानथन
ऊही लकड़ी मा तो अपन चुल्हा सिपचाथन
चार काड़ी कोरई मा छानही ला छाथन
चार काड़ी ला बेच के पईसा कमाथन
चार काड़ी कही-कही के जंगल चाट डारत हव
सुख्खा कही-कही के कांचा रुख ला मारत हव
वाह रे तुंहर पढ़े-लिखे मन के मतलबिहा गोठ
सरी जंगल ला बेच के हो गे हव बड़ पोठ
मोला बता जंगल के जगा का मोर बबा बेचत हे
रद्दा बर रुख गोंदथे तेला बता कोन छेंकत हे
आरा मे गोला चिरथे अऊ बंदुक मा चिरई तुकत हे
रुख ला उंडा के चिरई गुडा़ ला आगी फूंकत हे
जंगल के सबो जीव आज कांपत हावे
कोनहो आही बंचाय बर कहीके झांकत हावे
चिरई आगास मा उडीयाथे फेर ठिहा रुख राई ये
मरहा चिरई के टूटे पांख ये मनखे के चतुराई ये
साले तोला छेंकत हव ता तेहा सब ला गिनावत हस
धरती दाई ला भुला के परवार के फरज निभावत हस
अईसन मत का महु ला कुदरत के चिंता हे
फेर तेहा मोला बता नेता मन के पेट के बिता हे
रुख राई ला बचाना हे ता सबला एक होना परही
भोरहा मा हो जौन सोंचत होहु नेता मन देस गरही
चलो किरया खाओ आज ले सबो मोर संग दुहु
लकड़ी चोरहा जानहु तेला पानी घलो झन दुहु
रुख ले हे हवा पानी छांव अऊ सबो के जिनगानी
नई कटे जंगल, नई मरे जीव अब हमरो हावे बानी
**************************************
रचनाकार - ललित साहू "जख्मी"
ग्राम -छुरा
जिला - गरियाबंद (छ.ग.)
9144992879

पागा कलगी-12/11/ लता नायर

घिनहा कस काम काबर करेस गा l
घम छाँही तोहू तो पात रहेस
गवार कस काट देहेस गा !!
घर गोंसईयां कस होय कर
गर के काँटा बने तै !
जै गाछ ला दावन कुछु नहीं करिस
तैला तै गिधवा कस नोंच देहे गा !!
मोर बसेरा ला तिडी -बिडी़
गुरमट्टी कस कर देहेस गा !
तै कलेचुप काबर मोर सोन चिरई ला मुरईकस मुरकेट देहे गा !!
अब झेन कहबे आँधी घटा आइस है !
तै खुदे नियतखोर कस जमो भुईयां ला उजाड देहेस गा !!
*************************************
**** लता नायर
लखनपुर सरगुजा ******

पागा कलगी-12/10/राजकिशोर धिरही

झन काटव रुख ल।
झन काटव रुख ल।।
उजर जाथे हमर खोंधरा
पाथन हमन जाड़ भोंभरा।
बड़ कल्लइ होथे जीये ल
मरथन जम्मों माइ पिला।।
समझव भाखा,दुख ल।
झन काटव रुख ल।।
धर के आरी तै काट देथच
टांगी टांगा ले छांट देथस।
ची ची चूं चूं करत रइथन
भिंया मा गिर गिर मरथन।।
छमा करव भूल चूक ल।
झन काटव रुख ल।।
केप केप करथे पिला,
महतारी हर उड़ जाथे।
काट काट रुख राइ,
मनखे हर दुख लाथे।।
सही के सहथन भूख ल।
झन काटव रुख ल।।
रुख काटे ले भईया
आसरा उजर जाथे।।
चिरई चुरगुन मन
बिन रुख मर जाथे।।
जीये देवव जिव मूक ल
झन काटव रुख ल।।
**********************
🙏🏼राजकिशोर धिरही🙏🏼
ग्राम+पोस्ट-तिलई
तहसील-अकलतरा
जिला-जांजगीर चांपा(छ.ग.)
पिन-495668

पागा कलगी-12/9/इंजी.गजानंद पात्रे"सत्यबोध"

रुख राई हे बेटा बरोबर
सुघ्घर पोसव पालव जी।
जिंदगी के ये आधार हे भईया
मिलके पेड़ लगावव जी।
सुख दुःख के साथी हमर
तनहा के मितान जी।
देवता रूप विराजे ये म
कहत हे पोथी पुराण जी।
मया दया के शीतल छाँव देथे
जिंदगी बर पुरवाई जी।
भूखे प्यासे ल खाना देथे
तन काया बर दवाई जी।
दुनिया के आधार खड़े हे
बड़े बड़े कारखाना जी।
झईन काटव् रुख राई ल भाई
ये हे जीवन समाना जी।
रुख राई पानी बरसावय
किसान के मन हरसावय जी।
सरग के बादर ल खिंच
धरती म उतारय जी।
अन्न धन्न सब हुए मतंगा
करम किसान के सिरजावय जी।
सोये बर पलंग सुपेती बने हे
बइठे बर सोफ़ा दीवाना जी।
लकड़ी काठ कस जीवन बने हे
सब ल हे एक दिन इही म जल जाना जी।
आज शहरीकरण औद्योगीकरण के कारन
बन के होवत हे विनाश जी
भविष्य के बात ल सोचव
जीना दूभर हो जाहि सबके,
जब शुद्ध हवा नई मिलहि
लेह बर हमला स्वांस जी।
बइठे बर छाँव नई मिलहि,
सब मरही भूखे प्यास जी।
करत पुकार हे पात्रे भाई,
कहना मोर मानव जी।
सब कोई अपन जीवन म
भाई रुख राई लगावव जी।
तन मन धन !
सब ले ऊपर वन !
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रचना-- इंजी.गजानंद पात्रे"सत्यबोध"

शनिवार, 18 जून 2016

पागा कलगी-12/8/राजकिशोर पाण्डेय

मनखे मन के मन ले मया सिरावत हे ।
घरी घरी, घरी जातरी के आवत हे ॥
साँस के धरखन हावै दुनियाँ के रुख राई,
इंकरे ले झक्कर, झड़ी अउ हे पुरवाई ।
रुख ल काट के कस्साई कस गिरावत हे ॥
खोंधरा के भीतर ले चूजा चिंचियावत हे,
आरा टाँगा धर ओदे मनखे आवत हे ।
चिऊचींउ सुन के घलाव नइ सोगावत हे ॥
घाम ह आगी होगे अक्कल फेर नइ आइस,
केदार के परलै देखिस परछो फेर नइ पाइस ।
बादर के पुरुत पुरुत ह परपरावत हे ॥
धुर्रा गर्रा बादर आगी अउ पानी बर,
रुख राई बहुत ज़रूरी हें जिनगानी बर ।
कतेक जुग ले कवि हर चिंचियावत हे ॥
घरी घरी, घरी जातरी के आवत हे ॥
🌷🌹राजकिशोर पाण्डेय 🌹🌷
नगर पंचायत मल्हार 
मों न 9981713645
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