मुक्तक 1
ऐहर जग मा पहली पूजा के अधिकारी हे।
दाई ऐकर गौरी, बाबू हा त्रिपुरारी हे।।
शोभा बरनत हावव मैहर तो गणनायक के।
वाहन ऐकर मूसक,काया हा अतिभारी हे।।
ऐहर जग मा पहली पूजा के अधिकारी हे।
दाई ऐकर गौरी, बाबू हा त्रिपुरारी हे।।
शोभा बरनत हावव मैहर तो गणनायक के।
वाहन ऐकर मूसक,काया हा अतिभारी हे।।
मुक्तक 2
मानय तोला सब झन,भगतन बर हितकारी हे।
ऐ जग के सब मनखे,तोरे बर बलिहारी हे।।
करथस मंगल सब बर,जनमानस तरईया तै।
किरपा के तै सागर,अधरे ले चिनहारी हे।।
मानय तोला सब झन,भगतन बर हितकारी हे।
ऐ जग के सब मनखे,तोरे बर बलिहारी हे।।
करथस मंगल सब बर,जनमानस तरईया तै।
किरपा के तै सागर,अधरे ले चिनहारी हे।।
-देवन ध्रुव
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