शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

पागा कलगी -8 //आशा देशमुख

बिन पानी नइ हे ज़िंदगानी
पानी रे पानी रे पानी ,सब खोजत हे पानी
तोर बिना सब सुक्खा परगे ,तड़फत हे परानी |
रुखवा राई ठाड़ सुखावय ,दहकत हावय परिया
नदिया नरवा सुख्खा रेती ,दर्रा उलगे तरिया
सूरूज घलो बरसे लागय ,जइसेआगी गोला
चिरई चुरगुन बोलत हावय ,कहाँ बचाबो चोला
बिकत हवय बाटल म पानी ,कतको करे दुकानी
पानी रे पानी रे पानी ,सब खोजत हे पानी |
जब ले आइस बोर जमाना ,पानी ह अउ अटागे
छेके नई पानी ल कउनो ,कती कती बोहागे
बून्द बून्द बस टपकत हावय ,जम्मों नल के टोटी
झगरा माते गली गली मा ,खींचे बेनी चोटी |
भसकत कुआँ ह सोचन लागय ,मोरो रिहिस जवानी
पानी रे पानी रे पानी ,सब खोजत हे पानी |
पानी के सब मोल समझही ,तभे कछू तो होही
एक बून्द पानी बर नइ तो ,ये दुनियाँ हा रोही ,
गाँव नगर शहर डगर मा ,चलिन ग हाँका पारी
छेड़े मुहीम सबो डहर मा ,मिल के नर अउ नारी |
पानी बिन नइ बाँचे जग मे ,कउनो के जिनगानी ,
पानी रे पानी रे पानी ,सब खोजत हे पानी |
-आशा देशमुख

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