"ढेकी"
घर मे राहय एक ढेकी,
सियान मन के धनकूट्टी।
कठवा के एकठन डांड़ी,
कठवा के एकठन कांड़ी।
डांड़ी के तरी मूसरी,
पहिरे लोहा के मुंदरी।
डाड़ी ला बोहे थुनिहा,
काबर बोहे हे गुनिहा।
मचाय ढेकी एकधुनिहा,
तभो नई धरही कनिहा।
हांथ म धरके डंगनी ला,
गोड़ चलावव ढेकी मा।
ढेकी मचय हमर काकी,
खोवय धान हमर दाई।
भुकरुस भुक ढेकी बाजे,
ककादाई छुमुक नाचे।
ओदर गे धान फोकला,
का पुछबे तहां गोठला।
भूंसा चंऊर अलगावा,
अउ खिचरी रांधव खावा।
कयिसे पेज मिठाइस हे,
अहिलेश्वर ल लिख बतावा।
सियान मन के धनकूट्टी।
कठवा के एकठन डांड़ी,
कठवा के एकठन कांड़ी।
डांड़ी के तरी मूसरी,
पहिरे लोहा के मुंदरी।
डाड़ी ला बोहे थुनिहा,
काबर बोहे हे गुनिहा।
मचाय ढेकी एकधुनिहा,
तभो नई धरही कनिहा।
हांथ म धरके डंगनी ला,
गोड़ चलावव ढेकी मा।
ढेकी मचय हमर काकी,
खोवय धान हमर दाई।
भुकरुस भुक ढेकी बाजे,
ककादाई छुमुक नाचे।
ओदर गे धान फोकला,
का पुछबे तहां गोठला।
भूंसा चंऊर अलगावा,
अउ खिचरी रांधव खावा।
कयिसे पेज मिठाइस हे,
अहिलेश्वर ल लिख बतावा।
रचना:--सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर,कवर्धा
गोरखपुर,कवर्धा
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