रविवार, 20 मार्च 2016

पागा कलगी -6//गरिमा गजेन्द्र

"ये बार होली चल न ऐसने खेलबो"
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ये रंग मे एकन रंग खुशी के ले आवव
सबे के जिनगी म रंग खुशी के घोलव
ये बार होली चल न ऐसने खेलबो
गलती ले कोनो ल दुःख पीरा देय होबो
अपन हर गलती के माफी मांग लेबे हम
नाता मा रंग ऐसन घोलन
सब नाता ल एके धागा म बांध लेबो हम
ये बार होली चल न ऐसने खेलबो
कोन्हो छुट गे होही वहु ल संग म मिला लेबो
कोन्हो रूठ गे होही वहू ल मना लेबो
सब रंग ल अपन रंग म मिला लेबो
ये बार होली चल न ऐसने खेलबो
हर छन बितात हे जे पल ओला अपन
मुट्ठी मा बांध लेबो
नई भुलन ये होली ल
ये पल म जी भर के जी लेबो
ये बार होली चल न ऐसने खेलबो
आतंक के प्रहार ले कांपत हे भुंइया डोली
मया के रंग गुलाल ले चल न खेलबो होली
कम होगे हे धरम करम
कम होवत हे मानवता
अब धरती के कोरा म पलत हे पापी
गवा गे हे हासी ठीठोली
वो ल सहेजबो
ये बार होली चल न ऐसने खेलबो
बिश्वास के भरबो झोली
मिलजुल के खेलबो होली
झन होवय घर कोन्हो बीरान
होवय झन कोन्हो बहिनी के अपमान
झन होवय काकरो मांग सुना
होवय झन कोन्हो लइका अनाथ
गांव गांव होये रंग रोली
ये बार होली चल न ऐसने खेलबो
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रचना - गरिमा गजेन्द्र
सरोना जिला - रायपुर

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