बुधवार, 23 मार्च 2016

पागा कलगी -6//ललित साहू"जख्मी"

"लईकई होली"
कोनहो उदीम बतातेव 
ता महु लईका बन जातेंव
बिन चिन्हे कोई मईनखे
सबके मुहु मा गुलाल लगातेंव
बारतेंव अंतस के राक्षस ला
अंगरा मे सरपट दंउड लगातेंव
ताहन अलकरहा माततेंव- मतातेंव
अऊ मया पिरित के होरी मनातेंव
बाजत नगाडा के कुदतेंव मे आघु
राहस बर लुगरा पहीर राधा बन जातेंव
ना लालच होतिस ना बैर काकरो ले
सुग्घर भक्त प्रहलाद मै बन जातेंव
नई जानतेंव मेहा ऊंच नीच के भाखा
एकता के जोरदरहा भोंपु बजातेंव
गातेंव फाग संस्कृति, परंपरा के
लगा के खोपडा बैरी बर बघवा बन जातेंव
रंग आनी बानी ये दुनिया के
चारो मुडा मेहा बगरातेंव
मितानी के किरया भांग मे डारके
संगवारी ला जबरहीया खवातेंव
पिचका मे भरतेंव रंग लाली परसा के
अरसा सही बोली मा मिठ पिरोतेंव
होतिस सोनहा नकली चुंदी खिनवा
पारस ब्यवहार सोनहा बर मै बन जातेंव
तिहरहा खजानी खिसा मे भर लातेंव
आधा खातेंव आधा दुसर ला खवातेंव
कोन्हो नई लगातिस ता खुदे रंग लगातेंव
उद्दे नहातेंव उद्दे होरी मा रम जातेंव
लाली, हरियर, पिंयर, कारी, मसयानी
हर रंग खुशियाली के उडीयातेंव
कन्हो मे फेर लईका हो जातेंव
होरी के बहाना तुंहर कोरा ला पातेंव
रचनाकार - ललित साहू"जख्मी"
ग्राम-छुरा / जिला- गरियाबंद(छ.ग.)
9144992879

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें