छत्तीसगढ़ के पागा कलगी 13 बर रचना
विषय शिर्षक— 'माटी के मितान'
विषय शिर्षक— 'माटी के मितान'
बीता भर पेट खातिर विधाता,
गढ़ दिस तोला किसान।
माटी मिहनत तोर संवागा,
तय भुइंया के भगवान।
चल चल संगी,
माटी के मितान,
गढ़ दिस तोला किसान।
माटी मिहनत तोर संवागा,
तय भुइंया के भगवान।
चल चल संगी,
माटी के मितान,
धरे तुतारी कतको हरिया ल,
अइसने रेंगत लांघ के,
बिझहा धान धरके मुठा म,
नांगर म बइला ल फांद के,
सवनाही म धारो धार,
चल जीनगी ल सिरजान।
चल चल संगी,
माटी के मितान,
अइसने रेंगत लांघ के,
बिझहा धान धरके मुठा म,
नांगर म बइला ल फांद के,
सवनाही म धारो धार,
चल जीनगी ल सिरजान।
चल चल संगी,
माटी के मितान,
हरियर हरियर खेती खार तोर,
हरियर हे जीनगानी रे,
धरती माता के दुलरवा झन,
होय एखर हिनमानी रे,
तोर जांगर के कमइ म,
होथे सोनहा बिहान,
चल चल संगी,
माटी के मितान,
हरियर हे जीनगानी रे,
धरती माता के दुलरवा झन,
होय एखर हिनमानी रे,
तोर जांगर के कमइ म,
होथे सोनहा बिहान,
चल चल संगी,
माटी के मितान,
गीताकार
एमन दास मानिकपुरी 'अंजोर'
औंरी, भिलाई—3, जिला—दुरूग
मो. 7828953811
एमन दास मानिकपुरी 'अंजोर'
औंरी, भिलाई—3, जिला—दुरूग
मो. 7828953811
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