बुधवार, 13 जुलाई 2016

पागा कलगी-13 /28/मिलन मलरिहा

*******माटी के मितान*********(गीत)
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नांगर के जोतईया, तय किसान मोर भईया
धान के बोंवईया संगी, मेढ़ के बंधईया
नईहे कोनो अनजान, खेत-खार तोर परान
खरही के गंजईया, तही "माटी के मितान"....
'
मेहनत के करईया, चटनी-बासी के खवईया
गाड़ा के चघईय, अर्र-तता के कहईया
पैरा के सकलईया, नांगर बईला तोर पहिचान
नईहे कोनो अनजान................................
'
खातु के छिंचईया तय, बन-दुबी के निंदईया
खेत के जतनईया संगी, कोपर म सिंघवईया
पसीना के बोहवईया जी मेहनत तोर ईमान
नईहे कोनो अनजान................................
'
बीड़ा करपा के जोरईया, कोठारे के सुतईया
दऊरी-बेलन मिसईया तय कलारी के खोवईया
कुरोकाठा नपईया, बाड़ही के देवईया रे सियान
नईहे कोनो अनजान................................
'
टेड़ा के डुमईया तही, पानी के पलोईया
बारी-बखरी बनईया, भाटा पताल के जगईया
माईपिल्ला माटी सेवा म, देवत दिनभर धियान
नईहे कोनो अनजान, खेत-खार तोर परान
तुतारी के धरईया , तही "माटी के मितान"......
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मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर

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