गुरुवार, 14 जुलाई 2016

पागा कलगी-13/21/पी0पी0 अंचल

माटी के मितान
एकर सही हकदार हे भुइंया के किसान
जेन हां लगादिस अपन पूरा दिलो जान
तभे एकर नाम धराईस माती के मितान
मुड़ म पागा खांध म नांगर
हासत कूदत एक मन आगर
माटी के सिंगार के कारन
भईया किसान पेरथे जांगर
सेवा करत संझा बिहान।
इही ल तो कथय भईया माटी के मितान
रापा कुदारी गागर तुतारी
बसूला बिंधना रमदा आरी
करके राखे जमो तियारी
किसिम किसिम के फसल ओन्हारी
अगोरा म पानी के बईठे भाई
टकटकी लगाए किसान।
इही ल कहिथे भइया माती के मितान।।
माटी के जबड़ हितवा
बन गए तैय जनम के मितवा
माती तोरे ओढ़ना बिछौना
माटी के बने हावय खिलौना
माती के भाग सहरिया
माटी म सोना उपजइया
पाए तैं एतका कन कहा ले गियान।
इही ल तो कहिथे संगी माटी के मितान।
तहीं खाके पेज बासी
तोला आए दिन भर हासी
आठो अंग म सेवा बसे हे
पूजा खातिर किसान सजे हे
जेकर पसीना माटी पाइस
पाके अपन भाग सहराईस
वापिस आहि इही माटी में
आसमान के उड़त बिमान।
इही ल तो कहिथें संगी माटी के मितान।
माटी के मितान ,माटी के मितान,
माटी के मितान,.................
रचना-
पी0पी0 अंचल
हरदी बाज़ार कोरबा (छ0ग0)
९७५२५३७८९९

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