गुरुवार, 14 जुलाई 2016

पागा कलगी-13/35/लोकेन्द्र"आलोक"

शीर्षक - माटी के मितान
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भुईहा के छाती चीर
धान मय जगाये हव
भुईहा ला हरियाये बर
पसीना मय बोहाये हव
दुनिया भर के मनखे मन
कहिथे मोला किसान
हव मही हर हरव
ये माटी के मितान
झिमिर झिमिर बरसत पानी मा
नांगर मय चलाये हव
बइल्ला के संगे संग महू हा
जांगर चलत ले कमाये हव
माटी ले भाग अपन लिखथव
तहु हर येला ले जान
हव मही हर हरव
ये माटी के मितान
धान मिंजे बर दउरी फांदेव
बइल्ला ला तो तो तो चिल्लाये हव
धान जगा दुनिया के
भूख मय मिटाये हव
थके हारे जब मेड़ माँ बईठथव
तब सोन कस दिखथे धान
हव मही हर हरव
ये माटी के मितान
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कवि - लोकेन्द्र"आलोक"
ग्राम - अरमरीकला
तहसील - गुरुर
जिला - बालोद
मोबाईल नंबर - 9522663949
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