मंगलवार, 12 जुलाई 2016

पागा कलगी-13/26/अश्वनी सिन्हा

* मोर मयारु माटी*
मोर मयारु माटी, मोर मयारु माटी
तिहि मोर संगी अउ तिहि मोर साथी
मोर मयारु मोर माटी.................
*अब जागो रे संगी, खेती ल करौ
माटी के खातिर जिऔ मरौ।
धरम करम के बिजहा छीतौ,
मया दुलार ले मन ल जीतौ।
आज खेती करत हे-2 ,बहु बेटा अउ नाती
मोर मयारु मोर माटी.............
*कारी बदरिया गरज के बरसे,टुटे मन ह अब नई तरसे।
बंजर भुइंया अब हरियागे,सरग बनाये बर आस जागे।
छत्तीसगढ महतारी के,ये धरती महतारी के आज जुडागे छाती
मोर मयारु मोर माटी.........
*महर महर महके माटी,बड मेहनत करय साथी
माटी के उपज माटी म बाढबो,मर के माटी म मिल जाबो
माटी के मितान"अश्वनी ",जलाये प्रेम के बाती
मोर मयारु मोर माटी,मोर मयारु मोर माटी
मोर मयार माटी,मोर..................
अश्वनी सिन्हा(परसोदा)

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