बुधवार, 13 जुलाई 2016

पागा कलगी-13/31/महेश मलंग

पागा कलगी 13 बर मोर प्रविश्टि
जेठ के चाहे गरमी होवय .
के अघ्घन पूस के जाडा
तरतर -तरतर चूहय पसीना
के मोर कापय हाडा .
कभू बैठेव थक हार के
मिहनत करथव बारो महीना
अन्न धन्न उपजाये बर
गारत रहिथव अपन पसीना
ए भुईया भगवान आय मोर
खेती करना जप तप ध्यान.
मै भारत के औ किसान
मै औ माटी के मितान .||
नागर जोत के बोथव बीजा
जब वो हा अंखुवाथे
देख के बीजा बने जमे हे
मन मोर हरसा जाथे
मन हरियाथे फ़सल देख के
लहर लहर लहराथे .
जब सोन कस बाली आथे
मन सोनहा हो जाथे .
जब घर आथे मा अनपुन्ना
घर म उछाह छा जाथे .
कोनो से मोला नै हे सिकायत
खुद पे मोला हे अभिमान .
मैं भारत के औ सान
मै औ माटी के मितान
महेश मलंग pandariya Kabirdham

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