शनिवार, 28 मई 2016

पागा कलगी-10 //सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

--: दार-भात :--
जय होवय तोर नोनी, 
मोला देवतहस दार भात।
मालिक के किरपा ले,
चमके तोर परताप।
भूख अउ भोजन अइसे जुरे,
जइसे आत्मा अउ परमात्मा।
पेट भर भोजन सबला पुरे,
बनिहार होवय के महात्मा।
खरे मंझनिया इही हाटकर,
बइठे बइठे गुनत रहेव।
भूंख के मारे कान के सनसन,
निमगा थोर थोर सुनत रहेव।
ततके खेवन तोर अवाज पायेंव,
एले बबा खालेवव दार भात।
जय होवय तोर बेटी,
मोला देवतहस दार भात।
बादर बरस के जुड़ोत हेवय,
धनहा कछार अउ भर्री ले।
सुरुज परकाश पुरोत हेवय,
फुलगी थांघा अउ जरी ले।
पुरवई रेंग के देखात हेवय,
सुवांस के डहर घेरी बेरी ले।
तइसने भुंख हरेक प्रानी ल सताथे,
नइ चिन्हय जात अउ पात ल।
जम्मो पेट के भुंख मिटाथे,
कोनो किन्चा नइ करय दार भात ह।
भुंखन लांघन गुनत रहेव,
मनके इही जजबात।
ततके खेवन धरके पंहुचगे,
मोर महतारी दार भात।
जय होवय तोर नोनी,
मोला देवतहस दार भात।
रचना:---सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गांव- गोरखपुर,कवर्धा
९६८५२१६६०२

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