शुक्रवार, 6 मई 2016

पागा कलगी 9//दिनेश देवांगन "दिव्य"

रोवत हे परियावरण, रोथँय नदी पहाड़ !
मनखें तज इंसानियत, करत हवय खिलवाड़!!
करत हवय खिलवाड़, काँटथें जंगल झाड़ी!
धुआँ करिस आकास, कारखाना अउ गाड़ी !!
सुनव दिव्य के गोंठ, मनखें जहर बोवत हे!
लेवन कइसे साँस, परानी सब रोवत हे !!


काॅटव रुख राई नहीं, हो जाही जंजाल !
शुद्ध हवा पाहव कहाँ, होही जी के काल !!
होही जी के काल, बरसही बादर कइसे !
उजर जही संसार,बिना जल मछरी जइसे !!
देत दिव्य संदेस, भलाई सबके छाॅटव !
सबो रही खुसहाल, नही रुख राई काॅटव !!

पेड़ लगावँव रोज गा, पेड़ हमर हे जान !
हाँसी जब परियावरण, संग हमूँ मुसकान !!
संग हमूँ मुसकान, नाचही चारों मउसम!
सावन अउ आषाढ़, बरसही पानी झमझम!!
सुनव दिव्य के गोंठ, प्रकृति ले मया बढावँव!
इही हमर वरदान, जतन के पेड़ लगावँव!

दिनेश देवांगन "दिव्य"
सारंगढ़ जिला - रायगढ़ (छत्तीसगढ़)

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