मंगलवार, 6 दिसंबर 2016

पागा कलगी -22//10//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

....नोट बंदी के नफा-नुकसान..........
_______________________________
नोट बंदी के का,नफा-नुकसान ल गिनान?
कतको नाचे त,कतको ल पड़गे जियान।
धरे रिहिस थप्पी-थप्पी,ते छटपटात हे भारी।
घेरी - बेरी देवे गारी , धरे धन कारी।
कंहू मेर गड़त हे, त कंहू मेर बरत हे।
बोरा - बोरा नोट , पानी म सरत हे।
लाइन में लगे के आदत ,जनमजात हे।
गरीब - मंझोलन सबो ,नोट बदलात हे।
फेर कतको के,कईठन काम अटकगे।
पंऊरी के रिस घलो , तरवा म चघगे।
फेर दुनिया संग चीज बदलथे,किथे सियान।
नोट बंदी के का, नफा-नुकसान ल गिनान?
कतको नाचे त, कतको ल पड़गे जियान।
करिया धन;सफेद करे के,दवा खोजे कतको।
त बेफिकर होके चटनी - बासी ,बोजे कतको।
टुटगे भ्रस्टाचारी अउ घूसखोरी के हाड़ा।
त राजनीति बर बनगे हे, ये बात अखाड़ा।
धने - धन म भरे गाड़ा ल, बेंक म उतार।
हिसाब-किताब बरोबर रख,काहत हे सरकार।
धरहा तलवार चाही,अभी तो निकले हे मियान।
नोट बंदी के का, नफा - नुकसान ल गिनान?
कतको नाचे त, कतको ल पड़गे जियान।
नोटबंदी के नुकसान कम,नफा जादा हे।
साथ देयेल लगही,सरकार के नेक इरादा हे।
असली म मिंझरे, नकली नोट छनाही अब।
का होथे धन के मोह, तेहा जनाही अब?
भगवान के बनाय काया, तो संग छोड़ देथे,
तोर बनाय कागत,कतिक काम आही अब?
बने होही अइसने उदिम म,अवईय्या बेरा।
तभे भारत बनही , बने मनखे के डेरा।
छोड़ माया;सकेल धरम-करम अउ गियान।
नोट बंदी के का, नफा-नुकसान ल गिनान?
कतको नाचे त, कतको ल पड़गे जियान।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें