मंगलवार, 6 दिसंबर 2016

पागा कलगी -22//9//दिलीप कुमार वर्मा

नोट बन्दी 
कोनो खुश दिखे,कोनो दिखे हे उदास देख,
लाइन म लगे हाबे,चारो कोती गोठ हे।
कोनो कहे अच्छा होइस,कोनो माथा पिटे हाबे,
पाँच सौ हजार के तो,जबले बन्द नोट हे।
करिया धन लाये खातिर,नकली मिटाये खातिर,
आतंक ल दबाये खातिर,मार देइस चोट हे।
कतको जलाय कतको,गंगा में बोहावत हाबय,
सहीं मजा लुटे झूठ,रोवत हाबय पोठ हे।
दोहा-जब-जब करिया धन मिले,तब-तब मारय चोट।
चलत हबय गा गोठ हा,जब ले बन्दी नोट।।
नेता छाती पीटत हाबय,बड़ दुखी दिखत हाबय,
लागत हाबय जइसे धन,भरे हाबय पोठ हे।
माल ओहा पाये हाबय,बड़कन दबाये हाबय,
पाँच सौ हजार के तो,धरे हाबय नोट हे।
आनी बानी के कहानी,कहत हे ओ जुबानी,
मोदी ल झुकाये खातिर,मारे लागे चोट हे।
कतको दिखावा करे,मुड़ चाहे गोड़ धरे,
करिया धन वाला के तो,बाचे न लंगोट हे।
दोहा--हाय-हाय नेता करे,नइ देवत हे कान।
जेकर करिया धन हबै,अब नइ बाचय प्रान।।
कुछ नवा पाये खातिर,जुन्ना ल गवाये परथे,
कह गये हाबय हमर,तइहा के सियान ह।
देश बदले के बीड़ा,मोदी ह उठाये हाबय,
लाइन में खड़े होत,रोवत हे मितान ह।
आज दुःख मिलत हे त,काली सुख पाबे तेहा,
धीरज ल धर काबर,डोलत हे ईमान ह।
नवा दिन लाय खातिर,देश ल बचाये खातिर,
जब ले नोट बन्द करे,रोवय बेईमान ह।
दोहा-ओकर लुटिया डूब गे,जेकर रहिस कुबेर।
एक चोट मोदी करे,सब्बो होगे ढेर।। 

दिलीप कुमार वर्मा
बलौदा बाज़ार

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