मंगलवार, 6 दिसंबर 2016

पागा कलगी -22//17//मोहन कुमार निषाद

विषय - नोट बंदी (विद्या रहित)
आनी बानी के लोग हे जी , किसम किसम के गोठ !
कोनो कहिथे अब नई चलय , हजार पान सौ के नोट !!
सुनके बड़ा अचम्भा लागीस , अब कइसे जी करबोन !
नई चलही अब पईसा हा , कती डहर जी धरबोन !!
सनसो होगे सबो झन ला , चिन्ता मनला खावत हे !
का अमीर का गरीब , ये नोट बन्दी सबला जनावत हे !!
अब एके ठन रद्दा बाचे हे , चलव बैंक मा जाइन !
अपन हजार पान सौ के नोट ला , जमा करके आइन !!
बैंक मा जाबे ता , लाइन लगे हे भारी !
खड़े खड़े जी जोहत रा , कब आही मोर पारी !!
तभो मनमा संतोष हे मोर , मोर मेहनत के पईसा ये भाई !
करिया धन वाला के मुह ओथरे हे , मात गे हावय करलाई !!
नोट बन्दी के होय हावय भारी असर , कोनो नई बाचीन !
सबला हला के राख दिच , नई छोडिस कोनो कसर !!
जाबे ता धरा देवत हे , दु हजार के नोट ला !
चिल्हर कोनो नई देवत हे , सुनले रंग रंग के गोठ ला !!
साहुकर मुड़ धर रोवत हे , चरचा ओखर घरोघर होवत हे !
चिन्ता ओखर मनला खावत हे , नोट बलदे के जुगाड़ जमात हे !!
जेनला कभु पुछय नही , ओखरे मेर हाथ लमावत हे !
ददा कका भईया कइके , घेरी बेरी गोहरावत हे !!
बड़ घमण्ड रहिस चीज के अपन , आज धन ला घुना खावत हे !
पईसा बदले बर आज , पईसा मा मनखे बिसावत हे !!
रचना
मोहन कुमार निषाद
गाँव लमती भाटापारा
मो. ८३४९१६११८८

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