....बबा घासी के उपदेस....
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मनखे-मनखे लड़त हे देख।
अतियाचार बढ़त हे देख।
बिरथा हो जही का?
बबा घासी के उपदेस।
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मनखे-मनखे लड़त हे देख।
अतियाचार बढ़त हे देख।
बिरथा हो जही का?
बबा घासी के उपदेस।
खुसरे माया के सांधा म।
फंदाय जातपात के फांदा म।
छोड़ के संजीवनी जरी,
भुलाय कोचरहा कांदा म।
छलत हस अपनेच ल,
बनाय देखावटी भेस।
बिरथा हो जही का?
बबा घासी के उपदेस।
फंदाय जातपात के फांदा म।
छोड़ के संजीवनी जरी,
भुलाय कोचरहा कांदा म।
छलत हस अपनेच ल,
बनाय देखावटी भेस।
बिरथा हो जही का?
बबा घासी के उपदेस।
सत के अलख जगाय कोन?
गिरे - थके ल उठाय कोन?
कोन करे पर बर फिकर?
लांघन ल भला खवाय कोन?
छुआ-छूत ,उंच-नीच मानत,
तोर-मोर कहिके मसके घेंच।
बिरथा हो जही का?
बबा घासी के उपदेस।
गिरे - थके ल उठाय कोन?
कोन करे पर बर फिकर?
लांघन ल भला खवाय कोन?
छुआ-छूत ,उंच-नीच मानत,
तोर-मोर कहिके मसके घेंच।
बिरथा हो जही का?
बबा घासी के उपदेस।
अधमी ल समझाय कोन?
अंधियार म दिया जलाय कोन?
कोन बनाय मनखे ल मनखे?
नसा दुवेस छोड़ाय कोन?
करत हे मनके कुछु भी,
लाज - सरम ल बेंच।
बिरथा हो जही का?
बबा घासी के उपदेस।
अंधियार म दिया जलाय कोन?
कोन बनाय मनखे ल मनखे?
नसा दुवेस छोड़ाय कोन?
करत हे मनके कुछु भी,
लाज - सरम ल बेंच।
बिरथा हो जही का?
बबा घासी के उपदेस।
सुवारथ बर लड़त हे।
जीव-जंतु ल हलाल करत हे।
सुनता के चंदन ल मेट के,
माथा म मोह धरत हे।
बोली-बचन मीठ नइ हे,
धरम-करम ल दिये लेस।
बिरथा हो जही का?
बबा घासी के उपदेस।
जीव-जंतु ल हलाल करत हे।
सुनता के चंदन ल मेट के,
माथा म मोह धरत हे।
बोली-बचन मीठ नइ हे,
धरम-करम ल दिये लेस।
बिरथा हो जही का?
बबा घासी के उपदेस।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795
बालको(कोरबा)
9981441795
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