शुक्रवार, 16 दिसंबर 2016

पागा कलगी -23//3//मोहन कुमार निषाद


अब्बड़ सहेन चुप रहिके मार !
हमरे गढ़ मा आके बैरी ,
हमिला देखाये तय हर आँख !!
जम्मो डहर मा तोरेच चरचा !
घरोघर हावय नाव के परचा !!
शोर उड़त हे गली खोर मा !
निकले नही कोनो तोर डर मा !!
दाई बहिनी लईका महतारी !
छाये हावय भारी लाचारी !!
करे तय घातेच अत्याचार !
उजाड़े कतको घर परिवार !!
समझे नही कखरो दुःख दरद ला !
जाने नही जी काही मरम ला !!
गाँव गरीब किसान ला सताये !
बेगुना जवान ला तय मारे !!
देश के जवान ला ललकारे !
शेर के मांद मा कोलिहा चिल्लाये !!
बेच खाये तय अपन ईमान !
थोकन तो डर रे बईमान !!
देश द्रोही बनके तय हर !
खोखला करदे पूरा समाज !!
माटी मा मिलाके रख देच !
भारत माँ के तय लाज !!
जागत हे देश के नवजवान !
देवत तोला हे मुंहतोड़ जुवाब !!
भाग जा लेके तय हर बैरी !
बचाके अपन परान रे !!
जागगे हावय देश के बेटा !
बनगे हावय तोर काल रे !!
वाह रे आतंकवाद , वाह रे आतंकवाद
रचना
मोहन कुमार निषाद
गाँव लमती भाटापारा
मो. ८३४९१६११८८

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