बुधवार, 13 जनवरी 2016

पागा-कलगी-1// विजय साहू अंजान

बदलाव नवा साल मा

दिन रात जांगर पेरत हे तबले,
थोरको सुख नई जाने,
गरीब के दुख पीरा ल काबर ईहा,
कोनो नई पहिचाने|
कइसे चलही इंकर जिनगी,
अइसन परे दुकाल मा,
ऊंचहा खुरसी के बइठइया मन
थोरकिन बदलव नवा साल मा..बदलव नवा साल मा....
घाम पियास ल तापत रहिथे,
अन्न दाई ल ऊपजाए बर,
जाड़ शीत मा काँपत रहिथे,
हमर कांवरा बिसाय बर...|
अलकरहा फंस गेहे संगी,
मछरी कस गरीबी के जाल मा...
ऊंचहा खुरसी के बइठइया मन,
थोरकिन बदलव नवा साल मा..बदलव नवा साल मा..|
रोज दिन के हर-,हर कट-कट मे,
जी हर घलो कऊवा जाथे,
नान -नान लइका के भूख हा,
अंतस ला रोवा जाथे|
चर्रस ले टूट जाथे सपना,
जियत हे बेहाल मा..
ऊचहा खुरसी के बइठइया मन,
थोरकिन बदलव नवा साल मा....बदलव नवा साल मा|
धान के कटोरा ह घलो अब उना परगे,
संसो मा कतको संगवारी जियत-जियत मरगे|
एसो के अंकाल-दुकाल मा,
इंकर भाग ह संऊहत जरगे..|
बतर किरा कस भुंजा जाही,
बिना काल के काल मा...
ऊंचहा खुरसी के बइठइया मन,
थोरकिन बदलव नवा साल मा..बदलव नवा साल मा..|
खुरसी ले उतरे बर परही,
जिनगी मा इंकर झाँके बर.,
सोंच हमर बदले बर परही,
दुख ला इंकर नापे बर.|
जुरमिल के खोजे मे मिलही,
सुख होही चाहे पाताल मा...
गरब अभिमान ला छोड़के संगी..
थोरकिन बदलव नवा साल मा...बदलव नवा साल मा..|
गिरे परे ल उठाये ल परही भेद -भाव ला मिटाके,
सच ला अंतस मा उतारे ल लागही लालच ल भुलाके|
जिनगी सबके सँवर जाही 'विजय'..
बंधना मे बंधा के एकता के ढाल मा..
ऊंचहा खुरसी के बइठइया मन..
थोरकिन बदलव नवा साल मा..बदलव नवा साल मा..|
रचनाकार
विजय साहू'अनजान'
करसा भिलाई
जिला दुर्ग

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