गुरुवार, 25 फ़रवरी 2016

पागा कलगी -4//हर्षल यादव

छत्तीसगढ़ी कविता प्रतियोगिता
छत्तीसगढ़ के पागा कलगी भाग - ०४
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सरग निसईनी
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जिहा नीलगगन मिलाफ होवाथे
सागर अमृत जल बरसावाथे।
चंदाके अंजोरी रात मा
मोर छत्तिसगढिया दाइ
सरग नीशयनी बनावाथे
भाखा के गूरतुर बोलि
पवनराज सुनावाथे
देख अपरिचित बेला
रात भि मुस्कावाथे
करम करम के पयडगरी मा
चमन बहार बिछावाथे
आज अपन लइक ला
सरग के राह दिखावाथे
धन्य हे मोर छत्तीसगढिया महतारी
माथ हमन नमावाथन
तोर मया के अंजोरीला
जम्मो मे बगरावाथन
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रचना - हर्षल यादव
वरोरा,चंद्रपूर ,महाराष्ट्र

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