शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016

पागा कलगी 4// ललित साहू "जख्मी"



सरग की सीढीया

सीढीया देखाय सरग के
हर बखत सबला भगवान
तोर मोर मे सब फंदा गे
भुला गे एकता के ज्ञान

जोरिया के धरती आकाश ला
देखाय हे अपन कला विज्ञान
वोकर सिरजाय कन - कन हरे
मईनखे, माटी अऊ ये जहान

सबके गोड मया के डोर बंधाय
मोहाय हे मितानिन बर मितान
हो जाही माटी के चोला माटी
अबुझ मईनखे हे गा अनजान

भटकत जीव खोजत रद्दा सरग के
करत हे पूजा घोलण्ड के उतान
करो बिन स्वारथ जीव सेवा
सरग के सीढीया इही तै जान

जे चढ जात हे दु सीढीया कनहो
समझत हे खुद ला बड. महान
कतको तै जेवर गहना लाद ले
संगवारी हे फकत जात ले समसान

अपन करनी कई जुग ले भोगबो
जेन करबो दाई ददा ला हलाकान
कहां खोजत हस रे मईनखे तेहा
इही तो हरे धरती के भगवान ।।

रचनाकार - ललित साहू "जख्मी"
ग्राम- छुरा जिला - गरियाबंद (छ.ग.)
मों. नं - 9144992879

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