।। मिलही सरग के द्वार ।।
जावव चाहे मथुरा कांसी
अऊ करलव ग तीरथ हजार।
धक्का मिलही झगड़ा मिलही
अऊ मिलही ग फटकार।
भटकत फिरत तै झिन रह
येला करलव ग इकरार।
सब ले बढ़के दुनिया म ग
हावय दाई ददा के प्यार।
जतन करो दाई ददा के
मिलही ग सरग के द्वार।
कोख ले अपन जनम दिस हमला
लाख लाख पीड़ा ल सहिके।
किसम किसम के भोजन कराईस
अपन लांघन भुखन रहिके।
दाई ददा हावे ग चारो धाम
अऊ इहि ह हमर जीवन के आधार।
जतन करो दाई ददा के
मिलही ग सरग के द्वार।
पालन करिस पोषण करिस
बचा के भूख प्यास ले।
जम्मो दुःख ल दुरिहा रखिस
करकट बिजली चम्मास ले।
अईसन ईश्वर के जे सेवा नई करिस
ओकर जीना हावय ग धिक्कार।
जतन करो दाई ददा के
मिलही ग सरग के द्वार।
रचनाकार ÷ राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद(समोदा)
9713872983
9713872983
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