शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

पागा कलगी ४ // ललित टिकरिहा

छत्तीसगढ़ के पागा कलगी क्रमांक 4
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           बर रचना
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"सरग के सीढ़िया म चढ़ लौ"
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चलव जिनगी ला अपन गढ़ लौ,
धरम के रद्दा म आगु बढ़ लौ,
दाई ददा के सेवा जतन ल करके,
सरग के सीढ़िया म चढ़ लौ।
सरग के सीढ़िया म चढ़ लौ।।
जिनगी के डोंगा खोय बरोबर,
धरती मा बिजहा बोय बरोबर,
सरवन कस कांवर  म धर लौ
सरग के सीढ़िया म चढ़ लौ।
सरग के सीढ़िया म चढ़ लौ।
ये जिनगी के हरय देवइया,
इहि हरय जी करम लिखईया,
दाई  ददा  के  पइया  पर लौ,
सरग के सीढ़िया म चढ़ लौ।
सरग के सीढ़िया म चढ़ लौ।।
अपन लहू ल बना के पसीना,
भाग ल हमर सुग्घर सजईया,
करके सेवा भवसागर तर लौ,
सरग के सीढ़िया म चढ़ लौ।
सरग के सीढ़िया म चढ़ लौ।।
संतन मन जेकर मरम बताये,
मानुष तन बड़ भाग ले पाये,
मउका ला झन बिरथा कर लौ,
सरग के सीढ़िया म चढ़ लौ।
सरग के सीढ़िया म चढ़ लौ।।
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🙏✏ललित टिकरिहा✏🙏
२७-२-२०१६

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