बुधवार, 13 अप्रैल 2016

पागा कलगी-7//देवेन्द्र नायक

ऐ हो दुर्गा दाई तोरे सेवा नई जानौ हो ------------ -
 ऐ हो महमाई तोरे पुजा नई जानौ हो ------------- 
तोरे दुआरी कईसे आंव --, 
ऐ मोर दाई तोरे-------- 
1. मा के गरभ मे रहेंव मे दाई, 
किरिया खाऐं तोर नाम के. 
आके मईया ईहाँ भूलाऐव, 
धन-दौलत सुख-धाम मे. 
अपन सरत ला दाई मै हा मूकर गेंव हो, 
कोन मूहू तोला गोहरांव --. 
ऐ मोर दाई---- तोरे दुआरी कईसे आव. 

2.अपन राग म मस्त रेहेंव माँ, 
सूरता भूलाऐं तोर नाम के. 
एक डहर म तिरिया रहिस अऊ, 
दूसर डहर भरे काम हे. 
सारी जवानी मद-मस्त भूलाऐं हो, 
का-का करम ला बतांव--. 
ऐ मोर दाई---- तोरे दुआरी कईसे आंव.

 3.आऐ बुड़हापा सब छिन होगे, 
तोला में गोहरावौं हो. 
तोर शरण में आके दाई, 
बीनती अपन चड़हावौं हो. 
मोला अपना ले दाई, शरण मे लगाले हो, 
तोरे दूआरी खटखटाँव--.ऐ मोर दाई---- 
तोरे दूआरी मेहा आँव. 

4.तोर छोड़ माँ कोन हे मोरे, 
तीही मोरे सँसार माँ.
तोला जानेंव माँ जगजननीं, 
जग के तिहीं आधार माँ. 
नायक लंगूरे तोर ,चरण पखारे माँ , 
दरश तो मोला देखाव--.
ऐ मोर दाई---- 
तोरे दूआरी मेहा आँव.
 ऐ हो दुर्गा दाई तोरे सेवा नई जानौ हो-------------- 

(रचना : देवेन्द्र नायक, गाँव-र.वेली,पाटन )

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