शुक्रवार, 5 अगस्त 2016

पागा कलगी-15 //6//बी के चतुर्वेदी//कोरबा

छत्तीसगढ़ी-मंच/पागा कलगी क्र-15****
***बी. के. चतुर्वेदी जी के रचना****' """""""""" """" "" """ "" """""""""""""""" " "" "" "
"जीबो -- मरबो "
" देश बर जीव छुटे गुइंया नइ कभु डरबो रे 
देश बर जीबो गुइंया देश बर मरबो रे "
इहि देश ,मोर महतारी जे अचरा जे जीयत हावन
गंगा, जमुना, सरसती अमरीत धार लगत पावन
हिमालय तोर माथा पांव सागर धोवत धरबो रे "
सब देवता के ठउर इहां राम कानहा मीत आइन
एके सिखाइन मरजादा एके करम गीत गाइन
अब सिता के हरइया ला रावन कय मारबो रे "
सत बादी हरिसचंद सत असत ला बताइन
धुरु पहलाद करीन भगति सरधा ला फरियाइन
सरवन जइसन दाइ ददा , देश ला बोहे चलबो रे "
हरियर तोरे काया कंचन चंदा उजियार कर जाथे
भगवा तोरे रंग रुप सुरुज उवत बूड़त रंग जाथे
भरत , अशोक ,सेत घन शांति तिरंगा अमर कहिबो रे "
परताप अउ शिवा जी दखेन दुनिया ला बताइन
झांसी रानी, लछमी बाई बीर इतिहास ला सीरजाइन
आजाद ,सुभास , भगत गुन जीनगी मा भरबो रे "
ये महतारी ला जेव तरेरही वोखर आंखी फोर जाबो
कतेक उड़ाही, कहां लुकाही
वोखर पखउरा टोर भाबो
देबो जीनगी ला होम गुरिया ,गुरिया अरपन करबो रे "
देश बर जीबो गुइंया देश बर. मरबो रे
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बी के चतुर्वेदी//कोरबा
8871596335

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