गुरुवार, 25 अगस्त 2016

पागा कलगी-16 //5//लक्ष्मी नारायण लहरे, साहिल

जा जा रे मोर परेवना संदेस हे मोर पहुचादे संदेस ल 
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जा उड़ जा नीला गगन म 
जा जा उड़ जा
आज मोर राख लाज
भाई देखत होही रसदा मोर आज
भाई के आखी ले बहत होही आंसू
अबड देर होगे जा जा उड़ जा रे नीला गगन म
जा जा रे मोर परेवना संदेस हे मोर पहुचादे संदेस ल
नानकुन म एके संग खेलें -कूदेंन
अब बचपन आथे सुरता
दाई के कोरा ,बाबू के मया
भाई के दुलार
आज राखी के हे तिहार मोर भाई करत होही मोर सुरता
मने मन रोवत होही
आंखी ले आंसू बोहत होही
कई बछर होगे मिले भाई ल
आज अबड सुरता आवत हे
कोन जानी भाई ह का सोचत होही
मने मन रोवत होही
हाथ ल घेरी बेरी देखत होही
मोर सुरता म बहिन ल खोजत होही
जा जा रे उड़ जा परेवना
जा उड़ जा नीला गगन म
जा जा उड़ जा
आज मोर राख लाज
भाई देखत होही रसदा मोर आज
भाई के आखी ले बहत होही आंसू
अबड देर होगे जा जा उड़ जा रे नीला गगन म
जा जा रे मोर परेवना संदेस हे मोर पहुचादे संदेस ल
बहिनी के मया ल झन भुलाही
पुराना राखी ल हाथ म बांधे होही
मोर भाई मोर आये के आस म
रसदा ल झांकत होही ....
जा जा रे उड़ जा परेवना
जा उड़ जा नीला गगन म
जा जा उड़ जा
आज मोर राख लाज
भाई देखत होही रसदा मोर आज
० लक्ष्मी नारायण लहरे, साहिल ,
युवा साहित्यकार पत्रकार कोसीर रायगढ़

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