शुक्रवार, 5 अगस्त 2016

पागा कलगी-15//4//राजकिशोर धिरही

 देश बर जीबो देश बर मरबो
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देश बर जीबो देश बर मरबो।
अपन भाखा ल गुरतुर करबो।।
झिन बोलव धरम जाति के बुराई।
बोलव बोल होवे देश के भलाई।।
सबो संग सुमता के गोठ करी।
देश संग गद्दारी कोनो झन करी।।
रब खातिर झन होवए कोनो झगरा।
भाईचारा बर पाटिन कलह के डबरा।।
कोनो आतंकी के झन बनीन संगी।
देश के खुशाली बर सहयोग मंगी।।
झन मारव पिटव कोनो मनखे ल।
समझावव भीतरी के मनके ल।।
घुसखोरी कालाबजारी हवए दोगलई।
नकली नोट छपईया ल पकडोई।।
दंगा फसाद आगजनी हवए बेकार।
देश म जन्मे तव देश ले करिन पियार।।
देश अपन होथे महतारी के समान।
अपन देश के सदा करी सम्मान।।
देश के सेवा माथ नवा के करबो।
देश बर जीबो देश बर मरबो।।
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रचना - राजकिशोर धिरही
अकलतरा जांजगीर चापा

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