गुरुवार, 3 मार्च 2016

पागा कलगी .5//आशा देशमुख


शीर्षक ..अब तो सबो नंदावत हे

गॉंव शहर के लोग लइका मन
कम्प्यूटर में फंदावत हे ,
अपन खेल ल हम खोजन कैसे
अब तो सबो नंदावत हे |
नई दिखे अब गिल्ली डंडा ,
दिखे नई बाटी भौरा
सुन्ना सुन्ना गली ह दिखथे ,
अउ सुन्ना पीपल चौरा |
नानकुन बड़कुन जेला देखिन
किरकेट के बल्ला घुमावत हे |
अपन खेल ल हम खोजन कैसे
अब तो सबो नंदावत हे। |
खो खो फुगड़ी गोटा बाटी
अब के नोनी मन नई जाने ,
सांप सीढ़ी अउ लुडो ल खेले ,
तिरी पासा खेल ल नइ जाने |
तरिया के तैरई नई जाने
स्वीमिंग पुल में नहावत हे |
अपन खेल ल खोजन कैसे ,
अब तो सबो नंदावत हे |
रेस टीप अउ रिच रिच गेड़ी ,
लागत हावे सपना के गोठ ,
माटी धुर्रा के घर बुंदियाँ ल
लील डारिस ग सिरमिट के कोठ |
खैरखा के फुदकी ल भुलागे
फ़ुटबाल में चिखला मतावत हे |
अपन खेल ल खोजन कैसे ,
अब तो सबो नंदावत हे |
रचनाकार
आशा देशमुख
एन टी पी सी जमनीपाली कोरबा
छत्तीसगढ़

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें