शुक्रवार, 4 मार्च 2016

पागा कलगी -5//महेन्द्र देवांगन "माटी"


विषय - हमर नंदावत खेल
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जब ले आहे किरकेट ह, गुल्ली डंडा नंदागे
लइकापन के बांटी भंउरा, जाने कहां गंवागे
पारा भर के लइका मन ह, हटरी म सकलाये
खेलन छू छुवउला संगी, अब्बड़ मजा आये
बेंदरा सही पेड़ में कूदन, खेलन डंडा पचरंगा
पटकीक पटका कुसती खेलन, कोनों राहे बजरंगा
तुक तुक के बांटी खेलन, अऊ चलावन भंऊरा
रेसटीप अऊ नदी पहाड़ ल, खेलन चंऊरा चंऊरा
बदलगे जमाना संगी, जम्मो खेल नंदागे
तइहा के बात ल बइहा लेगे, संसकिरती ल भुलागे
टीवी अऊ मोबाइल में, सबो आदमी भुलाये हे
सुन्ना परगे खोर गली, कुरिया में दुनिया समाये हे
रचना
महेन्द्र देवांगन "माटी"
गोपीबंद पारा पंडरिया

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